हैट्रिक की राह आसान नहीं, बदल गए हैं राजनीतिक समीकरण
स्वतंत्रदेश ,लखनऊएक चुनाव को छोड़ दें तो 1991 के बाद एक तरह से कुशीनगर संसदीय सीट भाजपा की परंपरागत सीट के रूप में सामने आई। इस बार यानी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन के बाद यहां का राजनीतिक समीकरण बदल गया है। ऐसे में यह सियासी चर्चा चल रही है कि भाजपा के जीत की हैट्रिक की राह उतनी आसान नहीं होगी।मोदी लहर का असर पूरी तरह से दिख रहा है तो गठबंधन के बाद विपक्ष की मजबूत मोर्चेबंदी भी दिख रही है। ऐसे में चुनाव के दिलचस्प होने के कयास लगाए जा रहे हैं। इस संसदीय सीट पर भाजपा ने जीत का स्वाद पहली बार 1991 में चखा और तब भाजपा प्रत्याशी रामनगीना मिश्र ने रामलहर में जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने इस सीट से 1996, 1998, 1999 के लोकसभा चुनाव में जीत का सिलसिला जारी रख लगातार चार जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी बना दिया, जो अब तक टूट नहीं सका है।
2009 में कांग्रेस के कुंवर आरपीएन सिंह ने इस संसदीय सीट से जीत दर्ज की थी, जो इस समय भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं। बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य दूसरे स्थान पर रहे थे। तब भाजपा उम्मीदवार रहे विजय कुमार दूबे तीसरे स्थान पर रहे थे। 2014 के चुनाव में भाजपा ने पुन: इस सीट पर कब्जा किया और राजेश पाण्डेय यहां से सांसद बने।
2019 में भाजपा ने प्रत्याशी बदल एक बार फिर से विजय कुमार दूबे को मैदान में उतरा और भाजपा को लगातार दूसरी जीत मिली। इस बार भी भाजपा से विजय कुमार दूबे ही मैदान में हैं। इस बार के राजनीतिक समीकरण की बात करें तो पिछले चुनाव में सपा व कांग्रेस अलग-अलग चुनाव मैदान में थे। इस बार दोनों का गठबंधन है, ऐसे में राजनीतिक समीकरण जरूर बदले हुए होंगे। मुकाबला भी रोमांचक होगा, क्योंकि गठबंधन अपना पूरा दमखम दिखाएगा।