उत्तर प्रदेशराज्य

शव ले जाने की हो रही वसूली

स्वतंत्रदेश,लखनऊ : राजाबाजार के बागमक्का निवासी सेवानिवृत्त बैंक कर्मी अनिल रस्तोगी की शुक्रवार को मौत हो गई। वह कोरोना संक्रमित थे और घर पर ही इलाज चल रहा था लेकिन शव को श्मशान घाट तक कैसे ले पहुंचाया जाए? यह सवाल उनके परिजन अफसरों और हेल्प लाइन पर फोन कर तलाशते रहे लेकिन अधिकांश फोन पर सिर्फ घंटी ही सुनाई दी। इंटरनेट मीडिया पर भी यह मामला गया लेकिन किसी के पास कोई जवाब नहीं था कि आखिर शव को श्मशानघाट पर कैसे पहु़ंचाया जाएगा।

सरकारी उदासीनता से शव को ले जाने वाले वाहनों के संचालक मनमानी कर रहे हैं।

आखिरकार निजी वाहन (लाश के वास्ते) वाले से बात की लेकिन वह तैयार नहीं हुआ। बात बढ़ी तो बीस हजार का किराया मांगा और चार पीपीई किट। कहा, कोविड शव को पहुंचाने का यही रेट है। पूरा ठेका लेते हैं श्मशानघाट तक पहु़ंचाने का।

इस प्रक्रिया में दोपहर एक से शाम पांच बज गए। जब शव गुलाला घाट पहुंचा तो तब यहियागंज पुलिस चौकी और निजी लोगों को फोन मदद करने के लिए आने लगे पहुंचे लेकिन इसके लिए जिम्मेदार सीएमओ की टीम संवेदनहीन बनी रही। मृत अनिल के रिश्तेदार आदित्य रस्तोगी का कहना है कि शव ले जाने के लिए नगर निगम कंट्रोल रूम फोन किया तो वहां से कोविड कंट्रोल रूम का नंबर दिया गया, जहां पर कंट्रोल रूम ऋतु सुहास के बात हुई तो उन्होंने डिटेल भेजने को कहा, लेकिन कुछ नहीं हुआ डीएम दफ्तर फोन करने पर वहां से दो नंबर दिए गए, जो रिसीव नहीं हो रहे थे। आखिरकार खुद से ही इंतजाम करना पड़ा।

इस त्रासदी को अनिल का परिवार भूल नहीं पा रहा है। यह दर्द सिर्फ उनका ही नहीं, शहर में तमाम लोग इस पीढ़ा को झेल रहे हैं,जिनके यहां कोई कोविड संक्रमित है और घर पर ही मौत हो जा रही है लेकिन शव आने का कोई इंतजाम नहीं है।

केस नंबर एक- ठाकुरगंज निवासी प्रवीन निगम कक्का कोविड संक्रमित थे और रिपोर्ट आने के तीन दिन बाद ही उनकी मौत हो गई। अब उनका शव कैसे श्मशानघाट ले जाया जाए। इसका कोई इंतजाम नहीं था। जहां फोन किया जाता  तो यही जवाब मिलता की निजी वाहन से ले आइए। उच्च प्रभाव से ही सरकारी एंबुलेंस घर पहुंची और इस प्रक्रिया में करीब दो घंटा लग गया।

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