मंदिर दौरों से BJP क्यों परेशान
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों के प्रचार अभियान शुरू होने लगे हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 8 जनवरी को अपने चुनावी अभियान की शुरुआत चित्रकूट से की। उन्होंने कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा की। सिर्फ जनवरी में वे चार प्रमुख मंदिरों का दौरा कर चुके हैं। 8 साल पहले जब भाजपा केंद्र और UP की सत्ता से दूर थी, तब प्रदेश भाजपा ने भी चित्रकूट से ही चुनावी अभियान की शुरुआत की थी। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी दो दिन के दौरे पर UP आकर चुनावी बिगुल फूंका था।
अखिलेश के मंदिर-मंदिर दौरों से भाजपा में खलबली है। यही वजह है कि योगी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बांदा में कहा, ‘हम 1990 को नहीं भूल सकते हैं। अयोध्या में रामलला की भूमि पर रामभक्तों को ढूंढ-ढूंढकर गोली मारी गई थी। जो भगवान राम को काल्पनिक कहते थे, वे सब अब मंदिरों में घूम रहे हैं।’
क्या मंदिर दौरों से परेशान है BJP? क्यों सक्रिय हुए BJP नेता?
अखिलेश पर हमेशा ही मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में वे यह जान चुके हैं कि सपा के परंपरागत M-Y (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे भाजपा को नहीं हरा सकते। यही नहीं वे पहले कांग्रेस और फिर बसपा से गठबंधन करके भी देख चुके हैं। सपा को नुकसान ही उठाना पड़ा है।
जानकारों का मानना है कि 2014 के बाद से जिस तरह से हिंदू वोटर्स पर भाजपा की पकड़ मजबूत होती जा रही है। उससे अखिलेश मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करने के लिए मजबूर हुए हैं। भाजपा हिंदू को अपना वोट बैंक मानती है। जब विपक्ष चुनावों में मंदिर और प्रतीकों की राजनीति करता है तो भाजपा ऐसे नेताओं का माखौल उड़ाती है।
क्या मुस्लिमों की अभी पहली पसंद सपा? वोट बैंक का नुकसान भी उठाना पड़ सकता है?
2017 के विधानसभा चुनावों तक उत्तरप्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक की बड़ी लड़ाई थी। 2007 में जब मायावती सीएम बनीं तो उन्होंने दलित और मुस्लिम गठजोड़ को अमलीजामा पहनाया था। 2017 में उन्होंने 100 टिकट मुस्लिम कैंडिडेट्स को दिए, लेकिन बसपा के सिर्फ 19 विधायक ही जीत कर विधानसभा पहुंचे।
सीनियर जर्नलिस्ट रंजीव कहते हैं कि उत्तरप्रदेश में तो अब ओवैसी भी सक्रिय हैं, लेकिन ओवैसी को उत्तरप्रदेश में तभी सफलता मिलेगी, जब बंगाल में वे सफल होंगे। दरअसल, बिहार में ओवैसी ने पांच सीट तो जीत लीं, लेकिन उन सीटों के नुकसान की वजह से तेजस्वी को विपक्ष में बैठना पड़ा। जिसका गलत मैसेज मुस्लिम कम्युनिटी में गया है।