हर घर तक नहीं पहुंची सफाई व्यवस्था
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :बारह दिसंबर को महापौर और पार्षदों का तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो जाएगा, लेकिन इस वर्षों में शहरवासियों को बदहाल सड़कों, गंदगी, सड़कों पर बहते सीवर और पेयजल संकट से कोई राहत नहीं मिल सकी। बजट के अभाव में सड़कों को बनाने की लंबी सूची है तो ठेकेदारी प्रथा से सफाई का लाभ भी हर किसी तक नहीं पहुंच सका।
सड़कों के अतिक्रमण से भी शहरवासियों को कोई राहत नहीं मिल सकी। सफाई व्यवस्था में पनप रहे भ्रष्टाचार से ही शहर की बदहाल तस्वीर में कोई बदलाव नहीं दिखा। अभी भी यह चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। घर घर से कूड़ा एकत्र करने योजना का लाभ आज भी हर शहरवासियों को नहीं मिल पाया है, जबकि वर्ष 2007 से यह योजना चल रही है। कागजी दावे में तो चालीस से पचास प्रतिशत घरों से कूड़ा उठाने का दावा किया जा रहा है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है।
तीसरे जलकल के लिए पानी का ठोस प्रबंध न होने से गर्मी के दिनों में गोमतीनगर, इंदिरानगर और चिनहट के करीब पांच लाख लोगों के सामने पानी का संकट गहरा जाता है। तीसरे जलकल (कठौता झील) को आज भी 135 किलोमीटर दूर लखीमपुर की शारदा नहर से पानी का इंतजार रहता है और सिंचाई विभाग सफाई के लिए नहर को बंद करता है तो पेयजल को हाहाकार मच जाता है।
नगर निगम सीमा में 88 गांव पिछले साल ही दिसंबर में शामिल हुए हैं और इन गांवों में विकास की गंगा बहाना ही चुनौती है। सीवरेज और पेयजल योजना के लिए एक अरब रुपये की जरुरत है और नगर निगम कर्मचारियों का बकाया रकम देने के साथ ही ठेकेदारों पर ढ़ाई से तीन अरब की देनदारी देने की स्थिति में नहीं है। अब नगर निगम की सीमा में शामिल हो गए 88 गांवों का भी वही हश्र होगा, जो पहले से शामिल 124 गांवों का हुआ था और आज भी वहां तमाम गांवों में विकास का इंतजार है तो सफाई तक नहीं होती है।
विकास के कोई काम नहीं हो रहे हैं। अधिकारियों और पार्षदों के बीच संवाद, सांमजस्य और समन्वय का अभाव है। शासन से विकास के लिए मिली रकम को सत्ता पक्ष के पार्षदों के क्षेत्र अधिक दिया गया है। सदन और कार्यकारिणी में लिए गए निर्णयों का पालन नहीं हो रहा है। सड़कों का हाल बुरा है और शहर के कई इलाकों में गड्ढे हैं। शहर के हर इलाके में नियमित सफाई नहीं हो पा रही है और घर घर से कूड़ा एकत्र करने की योजना हवा हवाई है।