देश-दुनिया में छाया बुंदेलखंड का दीवारी नृत्य
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :बुंदेलखंड में विरासत की थाती है, इसी में से एक है दिवारी नृत्य, जो आ देश दुनिया में छा गया है। बुंदेलखंड के बांदा के प्राथमिक पाठशाला बड़ोखरखुर्द के मैदान में युगदृष्टि संस्था द्वारा इस गौरवशाली दीवारी नृत्य का आयोजन किया गया, जिसका वर्चुअल प्रसारण देश के विभिन्न प्रांतों समेत लगभग 10 देशों में देखा गया। अमेरिका, कनाडा, इटली, फ्रांस, पोलैंड, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, स्पेन और जर्मनी में बैठे लोगों ने बुंदेलखंड के इस लोक नृत्य का आनंद लिया।
कैसे आया नृत्य
युगदृष्टि दीवारी नृत्य के लेखक डॉ.जनार्दन प्रसाद त्रिपाठी ने बताया कि इस कला का प्रारंभ त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के लंका विजय के बाद दीवाली को अयोध्या पहुंचने पर हुआ था। बाद यह अपभ्रंश होकर दीवारी नृत्य हो गया। द्वापर युग में भगवान कृष्ण के काल में नृत्य का विस्तार हुआ। अब यह दुनिया में मार्शल आर्ट का जनक युद्ध कला व योग पर आधारित है।
अमेरिका की डांस थेरेपी चिकत्सक ने किया शुभारंभ
दीवारी कार्यक्रम का शुभारंभ अमेरिका की डांस थेरेपी की चिकित्सक सिमरन कौर ने किया। दीवारी नृत्य कला के प्रमुख रमेश पाल, नगडिय़ा वादक बड़कौना, सुरेश कुमार, ढोल वादक कंधी, सुमरिनी गायक चुनबाद पाल, टेर गायक श्रीपाल, दीवारी गायक बाबू ने जब राग-चंपा त्वहमा तीन गुन, रंग-रूप और बांसा रे, और गुण त्वहमा कौन है कि भौंरा न आवय पासा रे। चंपा राधा बरन है, भंवरा न आवै पासा रे, माता अपनी जान के, भंवरा न आवै पासा रे…। छेड़ा तो दीवारी कलाकार जोश के साथ ऊंची कूद लगाते हुए एक-दूसरे से लाठियों के साथ भिड़े दिखे। लगभग 20 मिनट तक यह खेल चला।