उत्तर प्रदेशराज्य

ऑनलाइन कर सकेंगे अन्नपूर्णेश्वरी का पूजन-अर्चन

स्वतंत्रदेश,लखनऊ : देश- विदेश के श्रद्धालु जल्द ही काशीपुराधीश्वरी मां अन्नपूर्णा का दर्शन और पूजन-अर्चन आनलाइन कर सकेंगे। श्रीकाशी अन्नपूर्णा मठ-मंदिर इसकी शुरुआत कार्तिक पूर्णिमा से करने जा रहा है। इसमें श्रद्धालु मंदिर की वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकेंगे। आनलाइन शुल्क जमा कर ई-मेल पर भी इसके लिए आवेदन किया जा सकेगा। तय तिथि व समय पर अर्चक दल पूजन-अर्चन कराएंगे। यजमान इंटरनेट मीडिया के जरिए जुड़ कर इसमें सीधी भागीदारी कर पाएंगे। आनलाइन पूजा में उनसे संकल्प भी कराए जाएंगे और डाक से प्रसाद भी पाएंगे।

देश- विदेश के श्रद्धालु जल्द ही काशीपुराधीश्वरी मां अन्नपूर्णा का दर्शन और पूजन-अर्चन आनलाइन कर सकेंगे।

इस बार धनतेरस से लेकर दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट तक स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के चार दिनी दर्शन के दौरान डाक से अन्न-धन का प्रसाद भेजने की व्यवस्था में सफलता के बाद मंदिर प्रशासन ने यह निर्णय लिया है। आनलाइन पूजन-अर्चन के लिए अब अर्चकों को टैबलेट दिया जाएगा। महंत रामेश्वर पुरी ने बताया कि श्रद्धालुओं का रूझान देखते हुए कैमरे भी लगाए जाएंगे। काशीपुराधिपति बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार में आनलाइन पूजन-अर्चन व्यवस्था पिछले नवरात्र से ही लागू की जा चुकी है।

बाबा के आंगन में विराजमान अन्नपूर्णेश्वरी

बाबा के आंगन में सजे मां अन्नपूर्णेश्वरी दरबार की प्रतिष्ठा का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि इसमें बाबा स्वयं याचक रूप में खड़े हैं। मान्यता है कि बाबा अपनी नगरी के पोषण के लिए मां की कृपा पर आश्रित हैं। धर्म इतिहास पर गौर करें तो बाबा विश्वनाथ के यहां वास से पहले ही देवी अन्नपूर्णा विराजमान हो चुकी थीं। वर्ष 1775 में जब बाबा विश्वनाथ मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब पाश्र्व भाग में देवी अन्नपूर्णा का मंदिर मौजूद था। इसमें प्रथम तल पर विराजित माता की स्वर्ण प्रतिमा अपने आप में अनूठी है।

रजत शिल्प में ढले शिव बाबा की झोली में अन्नदान करती अन्नदात्री की कमलासन पर ठोस सोने की मूॢत व दायीं ओर मां लक्ष्मी और वाम भाग में भूदेवी की भी स्वर्ण प्रतिमा विराजमान है। साल में चार दिन दर्शन उत्सव के दौरान धान के लावे, बताशा संग मां का खजाना (सिक्का) वितरण की परंपरा है। अन्य दिनों में भूतल पर मंदिर गर्भगृह में स्थापित विग्रह की दैनिक पूजा की जाती है। आनलाइन पूजा इसी विग्रह की कराई जाएगी। मंदिर महंत रामेश्वर पुरी के अनुसार वर्ष 1601 में तत्कालीन महंत केशव पुरी के समय भी देवी के पूजन का प्रमाण उपलब्ध है

Related Articles

Back to top button