TATA को मिस्त्री का ‘टाटा’
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:अंबानी भाइयों के अलग होने के बाद अब देश में सबसे ज्यादा चर्चा शापूरजी पालोनजी ग्रुप (SP ग्रुप) और टाटा ग्रुप के बीच चले रहे विवाद की है। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि करीब 9 दशकों से जुड़े दोनों ग्रुप अलग होने जा रहे हैं। इस बारे में दैनिक भास्कर ने बिजनेस एक्सपर्ट्स से बात कर यह जानने की कोशिश की कि दोनों के रिश्ते खत्म होने से खासतौर पर टाटा ग्रुप पर आर्थिक रूप से क्या असर होगा और उसके पास SP ग्रुप से टाटा संस के शेयर्स वापस लेने के कितने ऑप्शंस हैं।
मिस्त्री परिवार और टाटा फैमिली के बीच रिश्तों की शुरुआत 1930 में हुई थी। कहा जाता है कि तब जेआरडी टाटा को स्टील फैक्ट्री बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी। उस वक्त पालोनजी शापूरजी मिस्त्री ने ही उनकी मदद की थी और उन्हें दो करोड़ रुपए दिए थे। इसके बदले में जेआरडी ने उन्हें टाटा संस के 12.5% शेयर्स दिए थे। यही हिस्सेदारी आज 18.37% तक पहुंच गई है। इसकी मार्केट वैल्यू 1.75 लाख करोड़ रुपए के करीब हो चुकी है।
रिश्ते बिगड़ने की वजह
SP ग्रुप की कमान संभालने वाले सायरस मिस्त्री को 2012 में 10 साल के लिए टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था, लेकिन उनके काम करने के तौर-तरीकों से नाखुश होकर सिर्फ 4 साल (2016) में ही उन्हें इस पद से हटा दिया गया था।
ऐसा भी कहा जाता है कि सायरस मिस्त्री के कामकाज के तरीके से न सिर्फ टाटा की कंपनियों को आर्थिक नुकसान हो रहा था, बल्कि टाटा ग्रुप के उसूल भी पीछे छूट रहे थे। इन्हीं बातों के मद्देनजर उन्हें चेयरमैन पद से हटाने का फैसला लिया गया था।
टाटा ग्रुप के लिए मुश्किल
मिस्त्री परिवार ने टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी बेचने की बात कही है। हालांकि, उन्होंने ये कभी नहीं कहा कि ये शेयर्स वे टाटा ग्रुप को ही देंगे। एक जानी मानी ब्रोकिंग फर्म के मुंबई स्थित सीनियर रिसर्च एनालिस्ट ने बताया कि सायरस मिस्त्री के मूड को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को भी ये शेयर्स बेच सकते हैं। मिस्त्री का यही फैसला टाटा ग्रुप के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बन सकता है। अभी मिस्त्री से शेयर्स खरीदने के लिए इतनी बड़ी रकम अपने समूह या बाहर से मैनेज करना टाटा के लिए थोड़ा मुश्किल होगा।