100 वां स्थापना दिवस आज
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:चिडिय़ाघर का नाम कई बार बदला लेकिन यहां वन्यजीवों का परिवार हमेशा एक रहा। उसमें किसी तरह की तब्दीली नहीं आई। हां, अब चिडिय़ाघर के कई वरिष्ठ सदस्य नहीं हैं। अब हुक्कू बंदर का बाड़ा सूना है। कालू नाम से हुक्कू की पहचान थी और 25 नवंबर 1987 को देहरादून चिडिय़ाघर से उसे लाया गया था। तब उसकी उम्र आठ वर्ष की थी और तीस साल तक यहां दर्शकों का मनोरंजन करने वाला 38 वर्ष की ïउम्र में चल बसा था। लोहित गैंडा अब चहलकदमी करता नहीं दिखता। चिडिय़ाघर की जब स्थापना हुई तो उसका नाम बनारसी बाग रखा गया। इसका नामकरण बाद में बदलकर ङ्क्षप्रस आफ वेल्स जूलोजिकल गार्डेन हो गया। इसके बाद नाम चिडिय़ाघर दिया गया और अब इसे नवाब वाजिद अली शाह जूलोजिकल गार्डेन के नाम से जाना जाता है।
शताब्दी वर्ष पर सोमवार को चिडिय़ाघर का टिकट जारी होगा, जिसकी कीमत पांच रुपये है। चिडिय़ाघर प्रशासन ने टिकट की छपाई के लिए बारह लाख रुपये खर्च किए हैं। अब डाक विभाग चिडिय़ाघर को साठ हजार टिकट भी देगा, जिसे चिडिय़ाघर प्रशासन अपने काउंटर से भी बेचेगा, जिसकी कीमत पचास रुपये तक हो सकती है।
शताब्दी स्तंभ तैयार, आज होगा अनावरण : चिडिय़ाघर के मुख्य मार्ग पर शताब्दी स्तंभ दिखेगा, जिसमे सौ वर्ष लिखा होगा। स्तंभ पर बबर शेर से लेकर पक्षियों व अन्य वन्यजीवों की आकृति बनाई गई है। स्तंभ चौदह फीट ऊंचा है, जबकि नौ फीट चौड़ाई और ढ़ाई फीट मोटाई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 29 नवंबर को शाम चार बजे शताब्दी स्तंभ का अनावरण करेंगे।
अवध के दूसरे नवाब नसीरूद्दीन हैदर ने बनारसी बाग को परिवर्तित कर लखनऊ प्राणि उद्यान की स्थापना 29 नवंबर 1921 को की थी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर ने तत्कालीन प्रिंस आफ वेल्स के लखनऊ आगमन को यादगार बनाने के लिए उद्यान का नाम प्रिंस आफ वेल्स जूलोजिकल गार्डेन रखा गया था। बाद में अवध के नवाब वाजिद अली शाह का नाम इस उद्यान को मिला।