राजनीतिराज्य

संविधान के अंतर्गत संसद का सत्र बुलाने को बाध्‍य है सरकार

एक तरफ जहां भारत कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ राज्‍यों की विधानसभा और केंद्र में संसद सत्र बुलाने की गतिविधियां तेज हो गई हैं। पिछले माह ही उत्‍तर प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र बुलाया गया था। अब केंद्र में भी 14 सितंबर से मानसून सत्र शुरू होने वाला है। हालांकि जहां जहां विधानसभा सत्र बुलाया गया है वहां पर कोविड-19 को देखते हुए एहतियात के सभी उपाय किए गए थे। इसके बावजूद एक सवाल ज्‍यादातर लोगों के मन में उठ रहा है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है जिसके तहत इस तरह के सत्र का आयोजन किया गया या आगे किया जा रहा है। इसका जवाब आज हम आपको देंगे।

दरअसल, भारत के संविधान में राज्‍यों और केंद्र की सरकार विधानसभा और संसद सत्र बुलाने के लिए बाधित होती हैं। संविधान के मुताबिक दो सत्रों के बीच छह माह से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर संविधान का उल्‍लंघन माना जाता है। भारत के संसदीय इतिहास की बात करें तो कभी ऐसा नहीं हुआ है कि जब सत्र को छह माह के अंदर न बुलाया गया हो। इस बार कोविड-19 की वजह से सत्र में इतना विलंब देखा गया है। आपको बता दें कि भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं दिया गया है जिससे किसी आपात स्थिति में सदन के सत्र को छह माह से अधिक टाला जा सकता हो । इमरजेंसी के दौरान क्‍योंकि सदन को भंग कर दिया जाता है तो उस वक्‍त सत्‍ता का केंद्र राष्‍ट्रपति होते हैं, अन्‍यथा सरकार को सत्र बुलाना ही होता है। जानकारों की राय में सदन के सत्र की अवधि को कम या ज्‍यादा किया जा सकता है लेकिन इसको छह माह से अधिक टाला नहीं जा सकता है। किसी राज्‍य में लगे आपातकाल की अवधि को भी छह माह से अधिक बढ़ाने के लिए सदन की मंजूरी जरूरी होती है।

इस सत्र में सरकार की तरफ से कुछ विधेयकों को पास करवाना प्राथमिकता होगी। इसके अलावा अध्यादेश के स्थान पर लाए जाने वाले प्रस्तावित कानूनों को मंजूरी दिलाना भी उसकी प्राथमिकता में शामिल हो सकता है। इस सत्र के बाबत जानकारी देते हुए संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि पहली बार इस तरह की महामारी के बीच संसद का मानसून सत्र बुलाया गया है। उनके मुताबिक इसमें कुछ अहम विधेयक और ग्‍यारह अध्यादेशों को विचार के लिए सदन के पटल पर रखा जाएगा। आपको बता दें कि किसी भी अध्यादेश को छह महीने के भीतर विधेयक के रूप में संसद की मंजूरी दिलवाना जरूरी होता है, अन्‍यथा वो निष्क्रिय हो जाता है

Related Articles

Back to top button