रोजगार के वादे और युवाओं के रुझान ने पैदा किया बड़ा फर्क
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :बिहार विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद शनिवार को विभिन्न टीवी चैनलों व सर्वेक्षण एजेंसियाें के सर्वे की मानें तो बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनती दिख रही है। सर्वेक्षणों के अनुसार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का सूपड़ा साफ हाेता दिख रहा है। सवाल यह है कि ऐसा क्यों और कैसे हुआ? दरअसल, रोजगार के वादे और युवाओं के रुझान ने बड़ा फर्क पैदा किया। आइए नजर डालते हैं विशेषज्ञों की राय पर।
महिलाओं और युवाओं ने पकड़े अलग-अलग गठबंधनों के दामन
पटना विवि के पूर्व कुलपति डॉ. रासबिहारी सिंह कहते हैं कि आवश्यक नहीं कि एग्जिट पोल के परिणाम सटीक एवं सही हों, लेकिन ये मतदाताओं की सोच को जानने की शानदार विधि जरूर हैं। इसके जरिए एजेंसियों ने जनता के मिजाज की पहचान की और संभावित परिणाम घोषित किए हैं। जीत चाहे जिसकी हो, असली विजय तो जनता की है, जिसने बेरोजगारी, पिछड़ेपन, जातीय एवं धार्मिक-सामाजिक विभाजन, कोरोना प्रकोप, प्राकृतिक आपदाओं की मार और कई प्रकार की विपदाओं के बीच अपने राजनीतिक विवेक का इस्तेमाल किया। यदि महिला मतदाता शौचालय, मुफ्त शिक्षा से प्रभावित हैं तो युवा वर्ग ने रोजगार की आशा में कतार लगाई। संभवत: दोनों ने अलग-अलग गठबंधनों के दामन पकड़े। यही कारण है कि एक्जिट पोल में एनडीए और महागठबंधन में टक्कर दिख रही है। जबकि, लोक जनशक्ति पार्टी समेत अन्य गठबंधन कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। ‘हंग विधानसभा की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
एनडीए में बिखराव से पलटी बिहार में सत्ता की कहानी
पटना के एएन कालेज के भूगोल संकाय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि बिहार में जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है। महागठबंधन को भारी जन-समर्थन के आसार हैं। इसकी वजह है कि उसके पास युवा नेतृत्व है। माय समीकरण के रूप में लालू प्रसाद का अपना वोट बैंक है। साथ ही सहानुभूति की लहर भी। आरजेडी ने चुनाव प्रचार के शुरू से ही रोजगार और स्थायी नौकरियों का वादा किया, जो उसके पक्ष में गया। ये ऐसे मुद्दे थे, जिसके चलते सवर्णों का भी समर्थन मिला। सरकारी नौकरियों के प्रति आकर्षण के चलते महागठबंधन ने सभी वर्गों का थोड़ा-बहुत समर्थन प्राप्त कर लिया।
सामने आ रही थिन मैजरीटी की बात
आद्री के निदेशक पीपी घोष से जब विभिन्न समाचार चैनलों पर शनिवार की शाम आए एग्जिट पोल पर बात हुई तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि जो बातें सामने आई हैं, उसके हिसाब से मामला थिन मैजरीटी का है। इसे यूं समझिए कि सरकार एनडीए की बने या फिर महागठबंधन की, उनके बीच सीटों का अंतर बहुत अधिक नहीं दिख रहा। ऐसा नहीं दिख रहा कि किसी एक दल को बहुत ही अधिक सीट है और दूसरा उससे काफी पीछे। आद्री के निदेशक ने कहा कि एग्जिट पोल में सीटों का अंतर बहुत अधिक नहीं होने की वजह से यह संभव है कि यहां एमपी सिंड्रोम दिखने लगे। मध्यप्रदेश में भी दोनों गठबंधन के बीच सीटों का अंतर बहुत अधिक नहीं था।
युवाओं के रुझान ने दिलाई महागठबंधन को बढ़त
अर्थशास्त्री प्रो. डीएम दिवाकर ने कहा कि यह चुनाव कई कारणों से खास है। कोरोना महामारी के बीच चुनाव हुआ। बहुत दिनों के बाद बेरोजगारी का बुनियादी सवाल प्रचार में बहस का मुख्य मुद्दा बना रहा। एनडीए अपने 15 साल के विकास की पिछले 15 साल के विकास से तुलना कर रहा था। जबकि, महागठबंधन ने रोजगार का सवाल प्रमुखता से उठाया। राजनीति में युवाशक्ति और नई पीढ़ी की उपस्थिति भी इस चुनाव की विशेषता रही। तेजस्वी यादव के मास्टर स्ट्रोक बेराजगारी के मुद्दा ने सभी दलों को इस सवाल को शामिल करने के लिये बाध्य कर दिया। एग्जिट पोल में सभी ने महागठबंधन के बेहतर प्रदर्शन का अनुमान लगाया है।