काशी में इस वजह से समय से पहले आई बाढ़
स्वतंत्रदेश ,लखनऊबनारस में जुलाई और अगस्त के पहले सप्ताह में बाढ़ ने नदी वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। समय से पहले आने वाली बाढ़ को उन्होंने अप्राकृतिक और मनुष्य की गलतियों का नतीजा बताया है। 30 साल में सिकुड़कर संकरी हो गई है गंगा। यही कारण है कि इस बार कम पानी में भी बनारस ही नहीं पूरे गंगा बेसिन ने बाढ़ को झेला है। यह बाढ़ अपने निर्धारित समय से लगभग एक से डेढ़ महीने पहले ही आई थी।बीएचयू के नदी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में इसके गंभीर दुष्परिणाम झेलने होंगे। नदी विज्ञानी प्रो. बीडी त्रिपाठी का कहना है कि बाढ़ का सबसे बड़ा कारण गंगा की गहराई और चौड़ाई का कम होना है।गंगा में गाद आने के कारण सिल्टेशन हो रहा है। यही कारण है कि अब गर्मी में हमें गंगा के किनारे बालू के टीले नजर आते हैं। गंगा की तलहटी अब ऊपर हो रही है। गंगा बेसिन क्षेत्र में अगल-बगल अतिक्रमण होने के कारण गंगा की गहराई और चौड़ाई कम होती जा रही है।अगर गंगा की गहराई होती तो पानी उसके पेटा में समाकर बहता और बाढ़ जैसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। गंगा बेसिन के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि गंगा के जलग्रहण क्षेत्र को बाधित होने से रोकना होगा और उसे मुक्त करना होगा।
गंगा की डिसिल्टिंग करनी होगी।आईआईटी बीएचयू के नदी विज्ञानी प्रो. यूके चौधरी का कहना है कि भारत जितनी समतल भूमि दुनिया में किसी भी देश के पास नहीं है। 2003 से गंगा देश की इस समतल भूमि के मृदा क्षरण के लिए बदनाम हो चुकी है।
22 साल बाद भी इसका कोई ठोस इंतजाम नहीं हो सकता है। गंगा बेसिन के खेतों के मिस मैनेजमेंट के कारण गंगा में सेरिमेंटेशन लोड हर साल बढ़ता जा रहा है। इसके कारण गंगा भी साल दर साल शहर से दूर होती जा रही हैं।