नहीं चले ब्राह्मणवाद और राम मंदिर जैसे मुद्दे
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :उत्तर प्रदेश में आज 7 विधानसभा सीटों उपचुनाव का मतदान खत्म हो गया। सातों सीटों पर औसत 53.62% मत पड़े हैं, जो 2017 के मुकाबले 63.90% से करीब 10 फीसदी काफी कम है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि कम वोटिंग का मतलब होता है कि मतदाता कोई बदलाव नहीं चाहता है। हालांकि कभी-कभी सारे कयास धरे के धरे रह जाते हैं और कोई एक कैंडिडेट भारी मतों से जीत भी जाता है। फिलहाल इस चुनाव में राम मंदिर, ब्राह्मणवाद जैसे मुद्दे नहीं चले हैं। यूपी में उपचुनावों का ट्रेंड देखे तो उपचुनाव का रिजल्ट हमेशा सत्ता पक्ष के फेवर में ही रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं कि आमतौर पर कम वोटिंग का मतलब होता है कि जनता बहुत ज्यादा बदलाव के मूड में नहीं है। हालांकि, यह कोई रूल नहीं है। क्योंकि कभी बम्पर वोटिंग होती है तो किसी पार्टी को लाने के लिए होती है। कम वोटिंग इसलिए भी उपचुनावों में होती है, क्योंकि जनता भी समझती है कि इससे सरकार पर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। हां… यह अलग बात है कि वह अपने स्थानीय विधायक से परेशान है तो उसे बदलने के लिए वोटिंग ज्यादा कर सकती है। यह बहुत कुछ लोकल मुद्दों पर निर्भर करता है।
विधानसभा सीट | वोटिंग प्रतिशत (2017) | वोटिंग प्रतिशत (2020) |
घाटमपुर (कानपुर) | 61.90 | 47.56 |
मल्हनी (जौनपुर) | 60.04 | 55.60 |
बुलंदशहर सदर | 64.27 | 49.77 |
टूंडला (फिरोजाबाद) | 69.66 | 50 |
देवरिया सदर | 56.53 | 48.48 |
बांगरमऊ (उन्नाव) | 59.80 | 49.45 |
नौगावां सादात (अमरोहा) | 76.32 | 57.60 |
भाजपा ने झोंकी पूरी ताकत तो विपक्ष क्यों दूर रहा?
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं कि इस चुनाव में भाजपा ने उतना ही जोर लगाया है, जितना वह जनरल इलेक्शन में लगाती है। सीएम खुद हर सीट पर प्रचार करने पहुंचे। साथ ही अपने मंत्रियों को भी सीट वार प्रचार में झोंका। यही नहीं वर्चुअल सभाएं भी की। इसके विपरीत सपा-बसपा और कांग्रेस में मुख्य लीडरशिप चुनाव प्रचार में गई ही नहीं। दरअसल, इन उपचुनावों में किसी भी तरह से अगर भाजपा को नुकसान होता है तो यह विपक्ष के लिए 2022 चुनावों से पहले मोरल बूस्टर का काम करेगा।
राममंदिर का मुद्दा भी नहीं चला
CSDS (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलेपमेंट सोसाइटी) कानपुर के निदेशक प्रो. एके वर्मा का कहना है कि यह मैं बहुत पहले से कह रहा हूं कि यूपी की जनता काफी सेकुलर है। 2007 से देखिए उसने बसपा के बाद सपा को और फिर भाजपा को मौका दिया है। रही बात राममंदिर निर्माण की तो उपचुनावों में लोकल मुद्दे हावी होते हैं।
यूपी उपचुनावों में ब्राह्मणवाद भी नहीं चला
उपचुनावों से पहले यूपी सरकार के प्रति ब्राह्मणों की नाराजगी देखने को मिली थी। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला कहते है कि ब्राह्मणों की नाराजगी चर्चा में रही जरूर लेकिन उपचुनावों में वोट प्रभावित नहीं कर पाए।जहां ब्राह्मण कैंडिडेट है, वहां ब्राह्मण को वोट किया गया है। लेकिन जहां ब्राह्मण कैंडिडेट नहीं है वहां भाजपा को ब्राह्मणों का वोट गया है।