उत्तर प्रदेशलखनऊ

16 महीने में इतने एक्सीडेंट और मौतें

स्वतंत्रदेश , लखनऊ:आगरा में शहर से लेकर देहात तक सड़कें कई बार लोगों के खून से लाल हो चुकी हैं। हर दिन दो से तीन हादसे हो रहे हैं। गत 16 महीने 500 से अधिक की जान गई, 800 से अधिक लोग घायल हुए हैं। इसके बावजूद संरक्षा के इंतजाम सिर्फ खानापूर्ति बने हैं।सड़क हादसों को रोकने के लिए हर तीन महीने में जिला परिवहन समिति की बैठक होती है। इसमें सड़कों पर सुरक्षा के इंतजाम पर चर्चा की जाती है। आदेश पारित किए जाते हैं। मगर, अधिकारियों के मंथन के बाद भी हादसों में कोई कमी नजर नहीं आ रही है।

थाने और हादसे

सिकंदरा – 135, खंदौली – 99, एत्मादपुर – 96, मलपुरा – 81, ताजगंज – 80, एत्माद्दौला – 65, अछनेरा – 62, सदर बाजार – 60, डौकी – 60, सैंया – 57, फतेहाबाद – 49, जगदीशपुरा – 48, फतेहपुर सीकरी – 45, हरीपर्वत – 34 

झपकी से सबसे ज्यादा हादसे

अधिवक्ता केसी जैन बताते हैं कि यमुना और लखनऊ एक्सप्रेसवे पर सबसे ज्यादा हादसे झपकी आने की वजह से होते हैंं। कई बाद जल्दी गंतव्य पर पहुंचने के लिए लोग खुद या फिर चालक से वाहन चलवाते हैं। नींद आने पर आराम नहीं करते। इस वजह से झपकी आती है। हादसा हो जाता है। इसके अलावा शराब पीकर वाहन चलाने से भी हादसे हो रहे हैं। सड़कों पर पुलिस की चेकिंग नहीं होती है। वाहन चालकों को भी जागरूक रहने की जरूरत है। जिन स्थान पर तीन से ज्यादा हादसे होते हैं, उन्हें ब्लैक स्पाट की श्रेणी में रखा जाता है। इन पर रोड इंजीनियरिंग में बदलाव कर सुरक्षा इंतजाम किए जाने होते हैं।एसपी ट्रैफिक अरुण चंद के मुताबिक, मार्ग पर जिन जगह पर तीन साल के अंदर पांच से अधिक हादसे हुए होते हैं, उनको ब्लैक स्पॉट के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक ब्लैक स्पॉट का दायरा 500 मीटर तक माना जाता है। इन रास्तों पर यह देखा जाता है कि हादसे की प्रमुख वजह क्या है। इसके बाद उसे समस्या को दूर किया जाता है, जिससे हादसे कम हो जाएं। जहां रोड इंजीनियरिंग में बदलाव की जरूरत है, वहां संबंधित विभाग के माध्यम से बदलाव किए जाते हैं। संकेतक लगाए जाते हैं। चेतावनी बोर्ड लगाए जाते हैं। सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में ब्लैक स्पाट पर हादसे कम करने को लेकर कवायद पर विचार किया जाता है। कई बार रोड इंजीनियरिंग (सड़क पर गड्ढे, मोड़ पर संकेतक नहीं होने, रोशनी नहीं होना) में कमी की वजह से हादसे होते हैं।

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