उत्तर प्रदेशराज्य

फिर से किसान आंदोलन की गूंज दिल्ली पहुंचेगी

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:भारतीय किसान यूनियन संयुक्त बैठक में फैसला किया गया है कि अगर किसानों की मांगों को समयबद्ध तरीके से सरकार नहीं मानती है तो फिर से दिल्ली कूच किया जाएगा। भारतीय किसान यूनियन के युवा अध्यक्ष अनुज सिंह ने बताया कि तमाम दावों के बावजूद आज भी किसान एमएसपी से नीचे फसल बेचने को मजबूर हैं। देशभर के किसान चौधरी राकेश टिकैत के नेतृत्व में 20 मार्च को दिल्ली कूच करेंगे। इस कार्यक्रम के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को किसान का कानूनी अधिकार बनाने की मांग प्रमुख मुद्दों में से एक रहेगा।

  • नवंबर 2020 में दिल्ली में मोर्चे की शुरुआत के पहले से ही संयुक्त किसान मोर्चा ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग उठाई थी। इस मांग का अर्थ यह है।
  • एमएसपी केवल 23 फसलों के लिए नहीं, बल्कि फल, सब्जी, वनोपज और दूध, अंडा जैसे समस्त कृषि उत्पाद के लिए तय की जाए।
  • एमएसपी तय करते समय आंशिक लागत (A2+FL) की जगह संपूर्ण लागत (C2) के डेढ़ गुणा को न्यूनतम स्तर रखा जाए।
  • एमएसपी की सिर्फ घोषणा न हो, बल्कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हर किसान को अपने पूरे उत्पाद का कम से कम एमएसपी के बराबर भाव मिले।
  • यह सरकार के आश्वासन और योजनाओं पर निर्भर न रहे, बल्कि इसे मनरेगा और न्यूनतम मजदूरी की तरह कानूनी गारंटी की शक्ल दी जाए, ताकि एमएसपी न मिलने पर किसान कोर्ट कचहरी में जाकर मुआवजा वसूल कर सके।

भारतीय किसान यूनियन के नेता अनुज सिंह बताते हैं कि सरकार के साथ 11 दौर की वार्ता की हर चर्चा में इस मांग को दोहराया गया था। यह मांग भारत सरकार के किसान आयोग (स्वामीनाथन कमीशन) की सिफारिश, स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए दी गई रिपोर्ट और वर्तमान सरकार के दौरान कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश के मुताबिक है। वर्ष 2014 के चुनाव में किसान को लागत का डेढ़ गुना दाम दिलवाने का वादा करने के बावजूद मोदी सरकार मुकर चुकी है।

भारतीय किसान यूनियन यह याद दिलाना चाहता है कि किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने की घोषणा करते हुए 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी और अन्य मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की थी। सरकार के 9 दिसंबर के आश्वासन पत्र में भी इसका जिक्र था। लेकिन आज वर्षों बीतने के बावजूद भी सरकार ने चुप्पी साध ली है। जाहिर है कि सरकार की नीयत साफ नहीं है।

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