भूमिविवाद का फैसला तो गत वर्ष ही आ चुका है, लेकिन विवादित ढांचा ध्वंस मामले के निर्णय का इंतजार बुधवार को खत्म होगा। यह वो विवाद है जिसने 90 के दशक में सत्ता-सियासत का स्वरूप अवश्य बदलकर रख दिया। राममंदिर आंदोलन ने देश की सियासत को नया नाम और नए चेहरे दिए। यह विवाद राजनीतिज्ञों की पूरी पीढ़ी को चमकाने वाला रहा। लालकृष्ण आडवाणी व कल्याण सिंह जैसे नेता मंदिर आंदोलन के पर्याय बनकर स्थापित हुए तो अनेक भगवाधारी साधु-संतों को भी सियासत में मुकाम हासिल हुआ। उमा भारती, स्वामी चिन्मयानंद, डॉ. रामविलासदास वेदांती, साक्षी महाराज, साकेतवासी महंत अवेद्यनाथ एवं विश्वनाथदास शास्त्री से लेकर उत्तरप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे धर्माचार्यों ने राजनीति में धाक जमाई।
वर्ष 2014 के लोस चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी की सफलता के मूल में भले ही बदलाव और विकास था, पर मंदिर मुद्दा भी इस सफलता में निहित था। यही वजह है कि उनकी छवि राममंदिर से जुड़ी उम्मीदों को धार देने वाले हिंदुत्व के महानायक की बनी रही और इसी अपेक्षा के अनुरूप उनके शासनकाल में मंदिर निर्माण की आरंभ होने की प्रतीक्षा पूर्ण हुई। मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं कहा भी था कि ‘रामकाज कीन्हेंं बिना, मोहि कहां विश्राम…।
विनय कटियार, वह नाम जिसे राममंदिर आंदोलन ने पहचान दी। उनका जन्म 11 नवंबर, 1954 को कानपुर में हुआ। बजरंग दल के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में उनकी छवि प्रखर वक्ता और फायर ब्रांड नेता के रूप में रही। देखते ही देखते विनय कटियार बजरंगी नाम से मशहूर हो गए। वर्ष 1991, 96 व 99 में लोकसभा चुनाव में उन्होंने दमदार जीत हासिल की। विनय कटियार वर्ष 2002-04 तक प्रदेश अध्यक्ष, फिर दो बार राष्ट्रीय महासचिव और एक बार उपाध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 2006 व 2012 में वे राज्यसभा सदस्य बने।
बृजभूषण शरण सिंह को मंदिर आंदोलन ने वह मुकाम दिया, जिससे अवध की सियासत में उनका दखल सिर्फ अपने जिले तक में नहीं, बल्कि अगल-बगल के जिलों में है। आठ जनवरी, 1957 को गोंडा में जन्मे बृजभूषण शरण सिंह रामलहर में हुए चुनाव में वर्ष 1991 में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने। उनका कद इतना बढ़ा कि उन्होंने वर्ष 2009 में भाजपा को आईना दिखा सपा के टिकट से कैसरगंज सीट से जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1999, 2004, 2009, 2014 व 2019 में वे लोकसभा के सदस्य चुने गए। वर्ष 2008 में वे अंतरराष्ट्रीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बने।
जिस वक्त राममंदिर आंदोलन शिखर पर था, तब मौजूदा सांसद लल्लू सिंह भाजपा के जिलाध्यक्ष थे। वर्ष 1991 से 1993 तक भाजपा जिलाध्यक्ष रहे लल्लू सिंह की सांगठनिक पकड़ किसी से छिपी नहीं है। वर्ष 1991 में पहली बार विधायक बने लल्लू सिंह ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1954 में जन्मे लल्लू ने प्रदेश की विधानसभा में 1993, 1996, 2002 और 2007 में अयोध्या का प्रतिनिधित्व किया। दो बार मंत्री भी रहे।
कथावाचक डॉ. रामविलास दास वेदांती मंदिर आंदोलन के नायकों में शुमार रहे। उन्होंने उस दौर में भाजपा के टिकट से जीत हासिल की, जब यह कहा जाने लगा था कि रामलहर फीकी हो चली है। वर्ष 1996 और 98 का लोस चुनाव लगातार दो बार जीतकर डॉ. रामविलास दास वेदांती ने साबित किया कि भगवा एजेंडा पूरी तरह से उपेक्षित नहीं हुआ था।