ताजमहल को लेकर उठते विवादों के जवाब
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:ताजमहल को लेकर इस समय देश में अलग अलग बहस छिड़ी हुई हैं। दरअसल ताजमहल का मसला कोई सिंधु सभ्यता का स्थान नहीं है कि जिसके बारे में जानकारी कम हो। ताजमहल को बनाए जाने, उसको बनाने वाले शिल्पी, खर्च, समय आदि सब कागजों में दर्ज है। ताज के निर्माण में कारीगरों के कई समूह लगे थे। इसका मुख्य शिल्पी उस्ताद अहमद लाहौरी था, जबकि भारतीय शैली के जानकार चिरंजी लाल प्रधान शिल्पी। बावजूद इसके ताजमहल के स्थापत्य, उसकी जमीन और निर्माण अवधि को लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं।इसकी शुरुआत पीएन ओक की पुस्तक से हुई, जिसमें उन्होंने स्थापत्य कला, शिखर पर मौजूद कलश आदि के जरिये इसे शिव मंदिर साबित करने की कोशिश की। कुछ लोग ताज को महोबा के चंदेल शासक परमर्दिदेव के समय की इमारत बताते हैं। ताज की जमीन पर दावा करने वाले इसे राजा मानसिंह का महल बताते हैं। सच्चाई क्या है, इसे इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली को समझकर जान सकते हैं।
शिखऱ से जुड़ा दावाः ताजमहल के शिखर पर त्रिशूल जैसा निशान शिव मंदिर होने का सुबूत है।
जवाबः ताजमहल के शिखर पर किरीट कलश फारसी शैली का है। जिसे त्रिशूल समझा जा रहा है, वह चंद्रमा है। उसकी आसमान की तरफ वाली नोंक स्वर्ग का संकेत है।
कमल के निशानः इस तर्क के लोग इसे भगवान विष्णु से जोड़ते हैं।
जवाबः ताजमहल में कमल भारतीय शैली के प्रभाव की झलक है। इंडो-इस्लामिक शैली में ऐसे उदाहरण और भी मिलते हैं। ताजमहल के तहखाने में 22 कमरे नहीं हैं। इसकी जगह मेहराबदार दालान है।
ताजमहल जिस जगह बना है उसे राजा मानसिंह की जगह बताया जाता है। इसे शाहजहां ने जयसिंह से लिया।
जवाबः यह बिल्कुल सही है। दोनों परिवारों में रिश्तेदारी थी। जमीन के बदले में राजा जयसिंह को हवेलियां दी गईं थीं। जय सिंह को मिर्जा राजा का उपाधि मिली थी, जो मुगल अपने परिवारी सदस्यों को ही देते थे।