ब्रज में पुरी के भगवान जगन्नाथ का वास
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :वृंदावन में तो भगवान श्रीकृष्ण के बाल और किशोर स्वरूप की साधना है, यहां के साधकों ने भगवान की बाल स्वरूप में ही साधना की है। राजा के रूप में तो भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपना साम्राज्य संभाला और कुरुक्षेत्र में जब महाभारत का संग्राम हुआ, तो गीता का संदेश दिया। लेकिन वृंदावन में भगवान जगन्नाथ की भी साधना यमुना किनारे जगन्नाथ मंदिर में पिछले पांच सदियों से अनवरत रूप से हो रही है। जहां पांच सौ साल पहले एक साधक की साधना से प्रसन्न होकर भगवान ने खुद ही स्वप्न देकर उन्हें वृंदावन में विराजित करने का आदेश दिया। इसके बाद वह साधक आराध्य जगन्नाथ के श्रीविग्रहों को जिनकी सेवा-पूजा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हुई, उन्हें लाकर यहां साधना करने लगे। आज इस मंदिर की दिव्यता और भव्यता देखते ही बनती है।
यमुना किनारे जगन्नाथ घाट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर के महंत स्वामी ज्ञानप्रकाश पुरी ने बताया संत हरिदास पुरी के महाराजा प्रताप रुद्र से याचना करके श्रीविग्रहों को वृंदावन लाए। कहा जब संत हरिदास यमुना किनारे साधना करते थे, तो भगवान ने उन्हें स्वप्न दिया और कहा तुम जगन्नाथ पुरी जाओ और मेरा पहला विग्रह लाकर यहां स्थापित करो। जब संत हरिदास जगन्नापुरी पहुंचे तो राजा प्रताप रुद्र ने कहा कि मेरे आराध्य ने मुझे कोई स्वप्न नहीं दिया। इसके बाद संत हरिदास समुद्र के तट पर जाकर साधना में लीन हो गए, जहां भगवान जगन्नाथ के श्रीविग्रहों को प्रवाहित करना था। इसी दौरान महाराजा प्रतापरुद्र को भगवान ने स्वप्न देकर साधक हरिदास को श्रीविग्रह प्रदान करने का आदेश दिया, तो राजा ने बड़े ही उत्साह के साथ रथों में विराजित कर भगवान के स्वरूपों को संत हरिदास के साथ वृंदावन के लिए रवाना कर दिया।