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इस ब्लड ग्रुप वालों पर कम हुआ कोरोना का असर

स्वतंत्रदेश,लखनऊ : हर व्यक्ति का एक ब्लड ग्रुप होता है कोरोना वायरस भी अपना प्रभाव कुछ खास ब्लड ग्रुप वाले लोगों पर हल्का रखता है तो कुछ ब्लड ग्रुप के लोगों पर गंभीर बना देता है। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुॢवज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के प्रो. अतुल सोनकर तमाम शोध पत्रों का हवाला देते बताया कि एबी और बी ब्लड ग्रुप को अधिक कोरोना वायरस से सचेत रहने की जरूरत है। इस ब्लड ग्रुप के लोगों में कोरोना का संक्रमण काफी गंभीर बना सकता है। ओ ब्लड़ ग्रुप के लोगों पर वायरस हल्का प्रभाव डालता है यानी होम आइसोलेशन में काफी हद तक ठीक हो जाते है।

प्रो. सोनकर के मुताबिक काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) ने एक रिसर्च पेपर जारी किया है इस रिसर्च के मुताबिक एबी और बी ब्लड ग्रुप के लोगों को कोरोना से से ज्यादा संभलकर रहने की जरूरत है। ओ ब्लड ग्रुप के लोगों पर इस बीमारी का सबसे कम असर हुआ है। इस ब्लड ग्रुप के ज्यादातर मरीज या तो एसिम्प्टोमैटिक हैं या फिर उनमें बेहद हल्के लक्षण देखे गए हैं।

एसजीपीजीआई के प्रो. अतुल सोनकर के मुताबिक सीएसआइआर ने एक रिसर्च पेपर जारी किया है इस रिसर्च के मुताबिक एबी और बी ब्लड ग्रुप के लोगों को कोरोना से से ज्यादा संभलकर रहने की जरूरत है।

यह सीरो पॉजिटिव सर्वे के डेटा के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है। इसमें देश के 10 हजार लोगों से डेटा लिया गया है और इसका 140 डॉक्टर्स की टीम ने विश्लेषण किया है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि शाकाहारी लोगों की तुलना में मांसाहारियों को कोरोना वायरस संक्रमण होने की आशंका ज्यादा है। प्रो सोनकर के मुताबिक सब कुछ किसी व्यक्ति के जेनेटिक स्ट्रक्चर पर निर्भर करता है। थैलेसीमिया से पीडि़त व्यक्ति को शायद ही कभी मलेरिया होता हो। कई उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनमें पूरे परिवार को संक्रमण हुआ, पर उसी परिवार का एक व्यक्ति इससे बचा रहा। इसकी वजह जेनेटिक स्ट्रक्चर है।

ओ ब्लड ग्रुप के लोग न हो जाएं लापरवाह

संभव है कि ओ ब्लड ग्रुप का इम्यून सिस्टम इस वायरस के खिलाफ व एबी और बी ग्रुप वालों से ज्यादा मजबूत हो। इस रिसर्च के मायने ये नहीं हैं कि ओ ब्लड ग्रुप वालों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन छोड़ देना चाहिए। वो पूरी तरह इस वायरस से इम्यून नहीं हैं और उन्हेंं भी दिक्कत हो सकती है। ये केवल सैंपल सर्वे है। वैज्ञानिक आधार पर साफ नहीं हो रही है कि अलग ब्लड ग्रुप वालों की संक्रमण दर क्यों अलग है।

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