उत्तर प्रदेशराज्य

इस वजह से देश में टॉप पर उत्तर प्रदेश

 स्वतंत्रदेश, लखनऊ। देश में भूजल संकट की भयावह स्थिति को भांपते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 22 मार्च को विश्व जल दिवस के मौके पर कैच द रेन अभियान की शुरुआत करने जा रहे हैं। वहीं चुनौती यह है कि वर्षा जल को संजो कर गिरते भूजल स्तर को ऊपर लाने के लिए हम एक कदम आगे बढ़ते हैं, तो वही बेलगाम दोहन इन प्रयासों को चार कदम पीछे धकेल रहा है। सच्चाई यह है कि बोरिंगो के अंधाधुंध निर्माण से सूबे के इकोसिसटम को भारी क्षति पहुंची है।

विश्व जल दिवस 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मौके पर करेंगे कैच द रेन अभियान की शुरुआत। आकड़े दर्शाते हैं कि तमाम क्षेत्रों में बीते दो दशकों में भूजल स्तर आठ से 12 मीटर अथवा अधिक नीचे चला गया है।

भूजल दोहन के मामले में जहां भारत दुनिया में अव्वल है, वहीं उत्तर प्रदेश देश में कुल दोहन का करीब 20 फीसद दोहन करने के साथ टॉप पर है। यहां के 48 जिलों व 20 शहरों के ऊपरी एक्यूफर्स भूजल धारक स्ट्रेटा) जवाब दे चुके हैं और अब गहरे एक्यूफर्स में वर्षों से भविष्य निधि के रूप जमा भूगर्भ जलभंडारों का खनन शुरू कर दिया गया है। भूवैज्ञानिकों का कहना है कि सूख चुके इन ऊपरी एक्यूफर्स की वापसी कठोर कदम उठाए बिना बेहद कठिन है। इसके लिए सबसे पहले भूजल दोहन के मौजूदा स्तर में प्रभावी कमी लानी होगी।

गंगा बेसिन में बसे इस राज्य में बीते 20 वर्षों के दरमियान बड़े पैमाने पर बारिश के पानी को संचित करने के लिए सरकारी कोशिशों की गई, लेकिन उनपर अनियंत्रित दोहन भारी पड़ा है। आकड़े दर्शाते हैं कि तमाम क्षेत्रों में बीते दो दशकों में भूजल स्तर आठ से 12 मीटर अथवा अधिक नीचे चला गया है। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश व लगभग डेढ़ दर्जन शहरों की स्थिति काफी खराब है। इसका मूल कारण भूजल दोहन की रफ्तार दो से तीन गुना बढ़ चुकी है और उसमें प्रभावी कमी लाने के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। बीते तीन दशकों में बारिश में आई जबरदस्त गिरावट ने भूजल की भयावह होती इस स्थिति में आग में घी का काम किया है जिससे प्राकृतिक रिचार्जिंग में काफी कमी आई है।

भूजल की बदहाल स्थिति से जुड़े कुछ तथ्य: 45 लाख निजी सिंचाई नलकूप , 17 लाख बिना पंपसेट की बोरिगें, शहरों में घर- घर लगी लाखों समर्सिबल बोरिंग व अनगिनत टयूबवेल और बेहिसाब कमर्शियल बोरिंगें भूजल भंडारों के अंधाधुंध दोहन की स्थिति को दर्शाने के लिए काफी है। गिरते भूजल स्तर के कारण प्राकृतिक रिसाव घटने से गोमती, सई सहित तमाम भूजल पोषित नदियों के प्रवाह में में भारी कमी। बीते दो दशको में वर्षा जल संचयन व रिचार्ज के लिए करोड़ों की लागत से निर्मित सरचनाएं भूजल स्तर गिरावट की स्थिति को सुधार न सकी। जलवायु परिवर्तन के कारण बीते दशकों में तीन दर्जन जिलों में बारिश में लगातार भारी गिरावट वर्षा जल संरक्षण के प्रयासों के लिए चिंता का सबब बनी।

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