उत्तर प्रदेशराज्य

तीस हजार करोड़ का लेनदेन ठप

स्वतंत्रदेश,लखनऊ :दो दिनी देशव्यापी हड़ताल के पहले द‍िन सोमवार को राजधानी में बैंकिंग सुविधाएं पूरी तरह प्रभावित रहीं। शनिवार व रविवार को अवकाश के बाद सोमवार को हड़ताल के कारण बैंक ग्राहकों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। दो दिनों से बैंक बंद होने के कारण सोमवार को एटीएम सेवाएं भी औंधे मुंह दिखीं। अधिकांश एटीएम में कैश खत्म होने के कारण बैंक ग्राहक नकदी की जरूरत के लिए इधर उधर भटकते दिखे। यूफबीयू के मीडिया प्रभारी अनिल तिवारी ने बताया कि विभिन्न स्रोतो से मिले आंकड़ों के अनुसार हड़ताल के पहले दिन लखनऊ में करीब ढाई हजार करोड़ व प्रदेश भर में करीब तीस हजार करोड़ से अधिक का लेनदेन प्रभावित रहा। बता दें कि हड़ताल के चलते लखनऊ में राष्ट्रीयकृत बैंकों की 905 बैंक शाखाओं के दस हजार व यूपी में 14 हजार बैंक शाखाओं के दो लाख कर्मचारी हड़ताल में शामिल रहे।

                                   लखनऊ में ढाई हजार करोड़ का कारोबार ठप।

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन (यूएफबीयू) के प्रदेश उपाध्यक्ष व नेशनल कंफेडरेशन ऑफ बैंक इंप्लाइज (एनसीबीई) के प्रदेश महामंत्री केके सिंह ने कहा, राष्ट्रीयकृत बैंकों ने सरकार के सभी लक्ष्यों को पूरा करने में महत्ती भूमिका निभाई है। सरकार की छोटी-बड़ी सभी योजनाओं को मूर्त रूप देने में हर बैंककर्मी समर्पण भाव से काम कर रहा है। इसके बावजूद भी सरकार की राष्ट्रीयकृत बैंकों को निजी हाथों में सौंपे जाने का हो रहा प्रयास हैरान करने वाला है। सरकार बैंकों के निजीकरण के फैसले को तत्काल वापस ले, वरना बैंककर्मी सड़क पर उतर विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर रहेंगे।

सोमवार को बैंकों में दो दिनी देशव्यापी हड़ताल के कारण राजधानी समेत प्रदेश भर की सभी बैंक शाखाओं पर ताले पड़े रहे। इसी क्रम में यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस यूफबीयू के बैनर तले विभिन्न बैंकों के कर्मचारियों ने अपने स्थानीय मुख्यालय व आंचलिक कार्यालय पर पहुंच सरकार के निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन किया। एसबीआइ मुख्यालय परिसर पर बड़ी संख्या में बैंककर्मी पहुंचे। ऑल इंडिया बैंक ऑफीसर्स कंफेडरेशन (एआइबीओसी) के प्रदेश सचिव दिलीप चौहान ने कहा कि 1938 से 1969 में ऐसे ही तमाम कारणों से सैकड़ों बैंक डूब गए। बैंकों का निजीकरण किसी वर्ग के हितकारी नहीं है। वी बैंकर्स की जोनल सेक्रेटरी शिखा सिंह ने कहाकि सरकारी संस्थाओं को जानबूझकर ऐसी योजनाओं के बोझ से दाब दिया जाता है कि ताकि वे घाटे में चली जाएं और उन्हें निजी हाथों में सौंप दिया जाए।

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