उत्तर प्रदेशराज्य

राहुल के बयान से टूटा कांग्रेसियों का दिल

स्वतंत्रदेश लखनऊ: अपने पुरखों की लगभग उजड़ चुकी राजनीतिक विरासत को कुछ सहेजने-सींचने के लिए बतौर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा पसीना बहा रही हैं। परिस्थिति अनुसार दूसरों के आंसुओं से अपनी पलकें भिगोकर यह दौड़ उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के मन में बसने के लिए ही है। इस बीच उनके भाई और सांसद राहुल गांधी ने उत्तर भारतीयों की समझ पर सवाल उठाकर कांग्रेसियों का भी दिल तोड़ दिया है। नेतृत्व के फैसलों पर असहमति जताने की सजा देख चुके सामान्य कार्यकर्ता तो चुप हैं, लेकिन पहले भी पार्टी नेतृत्व की सोच-समझ पर सवाल उठाने वाले फिर मुखर हैं।

कांग्रेस सांसद ने केरल में उत्तर भारतीयों की समझ पर दिया था विवादित बयान। सोच समझ और बयानों पर अपने ही उठाते रहे हैं सवाल यूं ही नहीं हुए बेगाने।

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अमेठी की अपनी पारंपरिक लोकसभा सीट भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए। बीते दिनों केरल में उन्होंने बयान देकर उत्तर भारतीयों की समझ पर सवाल उठाते हुए दक्षिण भारतीयों को मुद्दों की समझ रखने वाला बताया। इसे लेकर 2022 के लिए माहौल बनाने में जुटे कार्यकर्ता अवाक हैं। कानाफूसी है, लेकिन बेहद सावधानी से, क्योंकि इससे पहले राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा के फैसले पर असहमति जताने की वजह से दस वरिष्ठ कांग्रेसी पार्टी से निकाल दिए गए थे। इनमें पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक से लेकर संगठन के पुराने कार्यकर्ता तक थे।

मुद्दों को अपनी समझ पर परखने वाले कांग्रेसी राहुल के इस बयान पर भी मुखर हैं। कांग्रेस के गढ़ और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली के सदर से पार्टी की ही विधायक अदिति सिंह कहती हैं कि राहुल गांधी कोई क्षेत्रीय दल से नहीं हैं। एक राष्ट्रीय नेता हैं। उन्हें विभाजनकारी बातें शोभा नहीं देतीं। वह कहती हैं कि अमेठी और रायबरेली की जनता ने, कार्यकर्ताओं ने उनकी व उनके परिवार की बहुत मदद की है। इतने चुनाव जिताए हैं। राहुल का बयान कार्यकर्ताओं के दिल को ठेस पहुंचाने वाला है।

रायबरेली से ही कांग्रेस विधायक राकेश सिंह चिंता जताते हैं कि इससे पहले भी कांग्रेस की ओर से राम मंदिर व अनुच्छेद 370 सहित देशहित के मुद्दों पर विवादित बयान सामने आए हैं।

उत्तर भारतीयों ने चार राज्यों में बनवाई थी सरकार: कांग्रेस के पूर्व सांसद संतोष स‍िंह का कहना है कि नेहरू-गांधी परिवार को सत्ता सौंपने में उत्तर भारत का बड़ा योगदान रहा है। 1992 में अयोध्या में ढांचा विध्वंस के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

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