नए नियमों ने बढ़ाई मुसीबत… बंद हो सकती हैं जिले की 15 दवा फैक्टरियां
स्वतंत्रदेश ,लखनऊदवा बनाने वाली कंपनियों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई नई गाइडलाइन बड़ा खतरा है। नए मानकों को पूरा करने में फैक्टरियों को पूरा सेटअप ही बदलना पड़ेगा। शुरूआती लागत ही एक करोड़ से ज्यादा की हो जा रही है, जिससे उद्यमी परेशान हैं। जिले के ऐसे 15 छोटे दवा के उद्यम हैं, जिन पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है।पिछले साल फार्मा उद्योगों के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से डब्ल्यूएचओ के मानकों को ध्यान में रखते नई गुड्स मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज (जीएमपी) नीति जारी की गई। तय किया गया कि एक साल के अंदर सभी फार्मा कंपनियां नई जीएमपी के तहत ही दवा बनाएंगी। अब तक छह महीने बीत चुके हैं, लेकिन शहर की ज्यादातर कंपनियों ने पहले ही सरेंडर कर दिया है।इससे शहर के फार्मा उद्योग पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। उद्यमियों का तर्क है कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहले डब्ल्यूएचओ के मानकों को ध्यान में रखते हुए सिर्फ एक्सपोर्ट होने वाली दवाओं के लिए ही जीएमपी जारी की थी, लेकिन अब घरेलू उत्पादन के लिए भी यही मानक रखा है।

नए नियमों को पूरा करने में असमर्थता के कारण फार्मा एमएसएमई बंद होने की कगार पर हैं। फार्मा उद्योग से जुड़े शहर के उद्यमी रितेश श्रीवास्तव बताते हैं कि एक साल का सीमा विस्तार मिलने के बावजूद देश भर में अभी तक करीब 5000 एमएसएमई में से सिर्फ 1700 एमएसएमई ने ही अपने उत्पादन सुविधाओं को उन्नत बनाने की कार्ययोजना मंत्रालय को सौंपी है।
कई उद्यमियों ने किया सरेंडर
शहर के फार्मा उद्यमी व उत्तर प्रदेश ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के महासचिव शैलेंद्र रघु बताते हैं कि पहले सिर्फ एक्सपोर्ट के लिए सरकार ने जीएमपी जारी की थी। लेकिन सरकार ने पिछले साल इसे संशोधित कर घरेलू उत्पादन पर भी यही नीति लागू कर दी। इसके तहत किसी भी फैक्टरी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके प्लांट में किसी भी दवा के मॉलीक्यूल दूसरे घटक के संपर्क में न आने दें। मशीनों व हर दवा को बनाने का कमरा अलग रखा जाए। कमरे का तापमान, आर्द्रता, पॉजिटिव व नेगेटिव प्रेशर को बैलेंस कर सिस्टम अपग्रेड हो जाए। बताया कि अगर नई जीएमपी के तहत अप टू मार्क प्रोडक्शन नहीं होगा तो फैक्टरी बंद करनी पड़ेगी।सरकार करे कर्ज की व्यवस्था
फार्मा उद्यमी शैलेंद्र रघु का कहना है कि शहर में 12-15 यूनिटें हैं, जिनमें से अधिकांश शिथिल हो गई हैं। सिर्फ इंजेक्शन निर्माण वाली यूनिटें चल रही हैं। सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि 250 करोड़ टर्नओवर से नीचे के लिए यह दिशा निर्देश है, इसमें पांच करोड़ वाला छोटा उद्यमी भी परेशान हो रहा है। प्रदेश भर में लखनऊ, गौतमबुद्धनगर और नोएडा में करीब 450 यूनिटें हैं जो 5 करोड़ से लेकर 100 करोड़ तक के टर्नओवर तक की यूनिटें हैं, वह पूरी फैक्टरी कैसे बदलेंगे। किसी के पास जगह की समस्या है तो किसी के पास मशीनों की। सरकार ने इस मद में कर्ज की भी व्यवस्था नहीं की है।