विकास की लैंडिंग कराएगा जेवर एयरपोर्ट
स्वतंत्रदेश ,लखनऊ : आम बोलचाल में जेवर के नाम से चर्चा में रहा निर्माणाधीन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अब नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट के नाम से जाना जाएगा। वर्ष 2023 में यह एयरपोर्ट जब शुरू होगा तो विकास की लैंडिंग सीधे यूपी की सीमा में होने लगेगी। अभी यह आकलन ही है, लेकिन प्रदेश की जिस लोकेशन पर यह एयरपोर्ट बन रहा है, वह रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। पिछले दिनों इस एयरपोर्ट के नामकरण, लोगो व डिजाइन को अंतिम रूप देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके ग्लोबल ब्रांड के रूप में उभरने की जो उम्मीद जताई है, उसके पर्याप्त आधार हैं।
नोएडा का यह एयरपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना में तो शामिल ही है, लेकिन इसके पीछे प्रदेश के समग्र विकास की सुनियोजित रणनीति भी है। दरअसल प्रदेश में केवल दो इंटरनेशनल एयरपोर्ट ही थे- लखनऊ और वाराणसी। कुशीनगर में 2009 से एयरपोर्ट प्रस्तावित था, लेकिन उस पर काम की गति इतनी धीमी थी कि वह किसी उद्देश्य की ओर इशारा नहीं करती थी। इसी तरह जेवर में भी एयरपोर्ट बनाने की बात केवल भाषणों और वादों तक सीमित थी। योगी सरकार ने विकास से अछूते पूर्वी उत्तर प्रदेश और अकूत संभावनाओं के बावजूद आधारभूत ढांचे से वंचित पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मंथर गति से चल रही एयरपोर्ट की इन परियोजनाओं की ताकत पहचानी।
सबसे पहले कुशीनगर में बन रहे एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने का निर्णय किया गया और इसके बाद जेवर एयरपोर्ट को। लिहाजा कुशीनगर एयरपोर्ट के निर्माण कार्य में अचानक तेजी आ गई। कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट की जरूरत दो कारणों से बन रही थी। पहली यह कि पूरी दुनिया में फैले बौद्ध धर्म के करीब 53 करोड़ अनुयायियों को बौद्ध सíकट में सीधे लाया जा सके। कुशीनगर बौद्ध सíकट का केंद्र बिंदु है। श्रवस्ती और सारनाथ के साथ बिहार के बोध गया और नेपाल के लुंबिनी पहुंचने वाले श्रीलंका, थाइलैंड, म्यांमार, भूटान, जापान आदि के बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए कुशीनगर ऐसा पड़ाव है जहां से वह भगवान बुद्ध की प्रत्येक प्रेरणास्थली का भ्रमण या तीर्थाटन कर सकते हैं। दूसरा कारण चीन की आक्रामक नीतियां बनीं, जिसके तहत उसने नेपाल में पैठ बनानी शुरू की। चीन की मदद से नेपाल के भैरहवा में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की मंशा ने कुशीनगर एयरपोर्ट को गति दे दी।
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट से दिल्ली एयरपोर्ट पर भी दबाव घटेगा। इसमें संदेह नहीं कि जिस तरह कभी बंदरगाह वाले तटीय क्षेत्र बहुआयामी प्रगति का माध्यम हुआ करते थे, उसी तरह वर्तमान में उड्डयन क्षेत्र इसका सशक्त माध्यम है। विभिन्न उद्योगों को तो इस एयरपोर्ट से गति मिलेगी ही, वृहद स्तर पर रोजगार सृजन का भी अवसर उपलब्ध कराएगा।