कतर्नियाघाट और सोहागी बरवा में भी बनेंगे गैंडा पुनर्वास केंद्र
स्वतंत्रदेश , लखनऊ : दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडा परियोजना की सफलता को देखते हुए अब बहराइच के कतर्नियाघाट और महाराजगंज के सोहागी बरवा वन्यजीव क्षेत्र में भी गैंडा पुनर्वास केंद्र बनाने की योजना है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अध्ययन में यह क्षेत्र गैंडों के लिए मुफीद पाया गया है। इनके संरक्षण के लिए यहां प्राकृतवास चिह्नित कर उस क्षेत्र की घेराबंदी की जाएगी। इसके बाद यहां दूसरे स्थानों से गैंडे लाकर उनका पुनर्वास किया जाएगा। यह ऐसा क्षेत्र है जहां नेपाल से भी गैंडे आते हैं।
दुधवा टाइगर रिजर्व में गैंडों की संख्या बढ़ी : भारत में गैंडे 1850 तक बंगाल और उत्तर प्रदेश के तराई इलाके में काफी संख्या में पाए जाते थे, लेकिन अब यह केवल असम तक ही सिमटकर रह गए हैं। इसी को देखते हुए दुधवा टाइगर रिजर्व में वर्ष 1984 में गैंडा पुनर्वासन कार्यक्रम शुरू किया गया था। उस समय असम से पांच गैंडे दुधवा लाए गए थे। अगले साल 1985 में नेपाल से चार और मादा गैंडे लाए गए। गैंडा पुनर्वास योजना की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018 में यहां हुई डीएनए आधारित गणना में 38 गैंडे मिले थे। वर्तमान में इनकी संख्या लगभग 42 बताई जा रही है।
सरकार के पास भेजा गया प्रस्ताव : गैंडा परियोजना की सफलता को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग ने प्रदेश में कतर्नियाघाट व सोहागी बरवा में भी इनका पुनर्वास केंद्र बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसे सरकार के पास भेज दिया गया है। यहां असम व नेपाल से गैंडे लाकर उनका पुनर्वास किया जाएगा। इसे लंबी घास के मैदानों में रहना पसंद है। आसपास दलदली इलाका हो तो सोने पे सुहागा हो जाता है। इसे कीचड़ स्नान भी बहुत भाता है। यह सारी चीजें कतर्नियाघाट व सोहागी बरवा में मौजूद हैं।
डेढ़ से दो टन होता है गैंडे का वजन : भारतीय गैंडों की औसत लंबाई 12 फीट और ऊंचाई पांच से छह फीट तक होती है। मादा गैंडे का वजन डेढ़ टन व नर गैंडे का वजन लगभग दो टन के आसपास होता है। यह शाकाहारी होते हैं। यूं तो गैंडा धीमी चाल चलता है, लेकिन वह सरपट दौड़ भी सकता है। मादा गैंडा एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है। जन्म के समय गैंडे के बच्चे का सींग नहीं होता है।