सियासत में बढ़ा नई पीढ़ी का दबदबा
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :बिहार विधानसभा के चुनाव में तेजस्वी यादव से लेकर चिराग पासवान सरीखे युवा चेहरों के उभार से साफ हो गया है कि राज्यों की सियासत में अब नई पीढ़ी का दबदबा बढ़ने लगा है। बिहार चुनाव में जहां नेताओं की नई पीढ़ी खुद को स्थापित करने के लिए जोर लगा रही है वहीं उत्तरप्रदेश से लेकर दक्षिण में आंध्रप्रदेश, पश्चिम में महाराष्ट्र के साथ पूर्वोत्तर के कई राज्यों में नए चेहरों ने अपने सूबों में राजनीति की बागडोर थाम ली है।
बिहार के चुनाव अभियान में अनुभव बनाम अनुभवहीन की बहस के बीच हकीकत तो यही है कि महागठबंधन के चुनाव प्रचार का भार तेजस्वी के कंधे पर ही रहा है। इसी तरह लोजपा को अकेले मैदान में लेकर उतरे चिराग अपनी पार्टी को चाहे जितनी सीट दिला पाएं मगर सूबे की अगली पीढ़ी के चेहरों में अपना नाम जरूर शामिल करा लिया है। हालांकि तेजस्वी और चिराग दोनों के समक्ष खुद को बतौर नेता स्थापित करने की बड़ी चुनौती है। सूबे में भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के पास नई पीढ़ी के चेहरे का अभाव साफ नजर आ रहा है।
यूपी की सियासत में योगी, अखिलेश औऱ प्रियंका जैसे युवा चेहरे
राज्यों की राजनीति में पीढ़ियों के बदलाव के लिहाज से उत्तरप्रदेश की सियासत पूरी तरह से बदल चुकी है। भाजपा ने युवा चेहरे योगी आदित्यनाथ को 2017 में मुख्यमंत्री के तौर पर कमान सौंप सूबे में अपनी सियासत को नये तेवर दे दिए हैं। समाजवादी पार्टी ने 2012 में ही अखिलेश यादव को चेहरा बना लिया। इसी तरह तीन दशक से उत्तरप्रदेश की राजनीति में वापसी के लिए सारे प्रयोग करने के बाद कांग्रेस ने आखिरकार अब प्रियंका गांधी वाड्रा को सूबे की कमान सौंप दी है।
आंध्रप्रदेश में युवा जगनमोहन रेड्डी ने संभाली कमान
आंध्रप्रदेश में युवा जगनमोहन रेड्डी अपनी क्षेत्रीय पार्टी वाइएसआर कांग्रेस को स्थापित कर सूबे में मुख्यमंत्री की कमान थाम चुके हैं। इसके मद्देनजर ही तेलगूदेशम पार्टी के दिग्गज चंद्रबाबू नायडू अब अपने बेटे लोकेश नारा के लिए मैदान खाली करते दिखाई दे रहे हैं। तेलंगाना में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भले ही सूबे की कमान थाम रहे हैं मगर अगली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाते हुए बेटे केटी रामराव को अपनी सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री के तौर पर स्थापित कर चुके हैं।