उत्तर प्रदेशराज्य

बदल रहा बुंदेलखंड, चुनौतियां कायम; आसान हुई राह

स्वतंत्रदेश ,लखनऊबुंदेलखंडी गीतों में अब पानी की परेशानी बयां करने वाले ऐसे स्वर सुनाई नहीं पड़ते हैं। इसकी वजह सिर्फ पीढ़ीगत बदलाव ही नहीं है, बल्कि बुंदेलखंड की पूरी कहानी ही बदलनी शुरू हो गई है। अब यहां पानी की किल्लत और सूखा सियासी मुद्दे नहीं रह गए हैं। करीब-करीब हर घर तक नल पहुंच गया है। डकैतों का खात्मा भी हो चुका है। पर, सिक्के का दूसरा पहलू अब भी उतना उजला नहीं हो सका है, जितनी की उम्मीद लोगों को थी। यहां की सियासी फिजा में बेरोजगारी, अन्ना पशु (छुट्टा जानवर) और अवैध खनन की गूंज है। चुनावी चौसर की बात करें तो बांदा, जालौन और हमीरपुर में भाजपा और सपा के उम्मीदवार मैदान में डट गए हैं। वहीं, झांसी में भाजपा ने तो प्रत्याशी उतार दिए हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशियों का इंतजार ही हो रहा है। 

फतेहपुर की सीमा पार करते ही बुंदेली मिट्टी और हवा के झोंके में शुष्कता से दो चार होना पड़ता है। एक्सप्रेसवे और संपर्क मार्गों के नवनिर्माण के साथ कच्चे मकानों की संख्या घटने लगी है। साइकिल पर निकले बुजुर्ग के कंधे पर दोनाली बंदूक भी नहीं दिखी, जैसा कि पहले इस क्षेत्र में बंदूकें एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखने को मिलती थीं। देर रात तक बुंदेलखंड की सड़कें गुलजार हैं, तो चित्रकूट से मानिकपुर होते हुए सतना वाले रास्ते पर सिर पर गगरी लिए दिखने वाली महिलाएं भी अब नजर नहीं आती हैं। हमीरपुर से कबरई-महोबा मार्ग पर क्रेशर हों या भरतकूप (कुआं), यहां की पत्थर तुड़ाई से निकली धूल आसपास के गांव के लोगों को बीमारी दे रही है। लोग इससे निजात पाना चाहते हैं। महोबा में पान किसान तकनीक के साथ पान बाजार बढ़ाने का मुद्दा उठाते हैं, तो विभिन्न स्थानों पर बनी अनाज मंडियां अब मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं।ललितपुर के लोग फार्मा पार्क को लेकर उत्साहित हैं, लेकिन यहां उन्हें रोजगार मिल पाएगा, इस पर शंका जताते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति झांसी की भी है। वरिष्ठ पत्रकार महेश यादव कहते हैं कि यहां रोजगार के पर्याप्त साधन, उपचार एवं पोषण की व्यवस्था हो जाए तो बुंदेलखंड की पूरी कहानी बदल जाएगी। सियासी जानकार आलोक द्विवेदी कहते हैं कि बुंदेलखंड की पहचान बदल रही है। यहां पानी का मुद्दा पुराना हो गया है। रोजगार की पर्याप्त व्यवस्था हो जाए, छुट्टा पशुओं के लिए कुछ काम हुआ है, लेकिन अफसरों ने इसमें गंभीरता कम दिखाई है।

गांवों तक पहुंच हुई आसान
इटावा से चित्रकूट तक 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरा हो गया है। झांसी लिंक एक्सप्रेसवे एवं चित्रकूट लिंक एक्सप्रेसवे से जुड़े लिंक मार्गों ने गांवों तक पहुंच आसान कर दी है। ललितपुर में 1472 एकड़ क्षेत्रफल पर बल्क ड्रग पार्क के निर्माण के लिए प्रक्रिया शुरू हो गई। झांसी के पास 33 गांवों में बुंदेलखंड इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी के गठन को मंजूरी भी मिल चुकी है। बुंदेलखंड के ऐतिहासिक स्थलों को ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ योजना के तहत विकसित किया जा रहा है।750 करोड़ से बुंदेलखंड में वॉटर स्पोर्ट्स ईको टूरिज्म रोपवे हेलीपोर्ट बनेगा। बुंदेलखंड के 31 किलों को हेरिटेज होटल के रूप में विकसित करने की कवायद भी शुरू कर दी गई है। डिफेंस कॉरिडोर भी झांसी के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हो रहा है। अर्जुन सहायक परियोजना, रतौली वियर परियोजना, भाओनी बांध परियोजना और मझगांव-चिल्ली स्प्रिंकलर परियोजना से सिंचाई में मदद मिलने लगी है।

अभी बरकरार हैं ये चुनौतियां
बुंदेलखंड में तमाम कार्यों के बाद भी अभी रोजगार का मुद्दा कायम है। यहां के युवा कहते हैं कि अभी परियोजनाएं शुरू हुई हैं। इनका फायदा कुछ साल बाद मिलेगा। तब तक के लिए क्या करें? झांसी के रानीपुर में टेरी कॉटन उद्योग काफी बड़े स्तर पर था, लेकिन अब हाल बेहाल है।बुंदेलखंड के हर जिले में जिला महिला एवं पुरुष चिकित्सालय, 100 बेड के अस्पताल और मातृ शिशु केंद्र भी हैं। झांसी, बांदा और जालौन में मेडिकल कॉलेज हैं। इसके बाद भी यहां के लोगों को सुपर स्पेशियलिटी सुविधाओं के लिए कानपुर, लखनऊ, भोपाल या इंदौर जाना पड़ता है। जनवरी 2024 के बाल विकास विभाग के सर्वे में प्रदेश में चित्रकूट में सर्वाधिक 56 फीसदी और बांदा में 55 फीसदी बच्चे कुपोषित पाए गए, जो एक चिंता का विषय है।कम पैदावार इस क्षेत्र में गरीबी का एक प्रमुख कारण है। हालांकि क्षेत्र में नहर से लेकर ‘खेत तालाब योजना’ आ रही है। इसके बाद भी अभी ज्यादातर किसान फसलों के लिए मानसून की बारिश पर निर्भर हैं। अन्ना जानवरों के लिए गोशालाएं बनाई गई हैं, लेकिन अभी भी जानवर खेत की फसल चट कर जाते हैं।राष्ट्रीय साक्षरता दर 65.38% की तुलना में इस क्षेत्र की साक्षरता दर 48.41% है। इसमें महिलाओं की साक्षरता दर 34.98% ही है। यहां खुले विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों का असर भविष्य में दिखेगा।

भौगोलिक स्थिति : बुंदेलखंड के 13 जिलों में सात यूपी के हैं। इनमें झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट शामिल हैं। इन्हें मिलाकर चार लोकसभा क्षेत्र हैं। यहां के ज्यादातर छोटे और मझोले किसान हैं। चट्टानी इलाके में अभी सिंचाई की कमी है। ऐसे में यहां लोग सरसों और गेहूं से ही काम चलाते रहे हैं, लेकिन अब अलग-अलग इलाके में जहां जलाशय और बांध हैं वहां क्लस्टर के हिसाब से फल, सब्जी की खेती शुरू हो गई है।

कायम है अलग राज्य का मुद्दा
बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने का मुद्दा अभी कायम है। हमीरपुर से भाजपा के सांसद पुष्पेंद्र सिंह ने पिछले दिनों सदन में कहा था कि बुंदेलखंड को केवल एक जमीन का टुकड़ा न समझा जाए, अलग प्रांत बनाने की व्यवस्था की जाए। बुंदेलखंड को ऑर्गेनिक खेती वाले क्षेत्र के रूप में भी दर्जा दिया जाना चाहिए। बुंदेलखंड राज्य निर्माण का मुद्दा कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर मायावती तक ने उठाया।

2014 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती ने भी इस मुद्दे को हवा दी थी। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के अध्यक्ष भानु सहाय कहते हैं कि 1956 के पहले तक बुंदेलखंड अलग राज्य के अस्तित्व में रहा है। जब देश आजाद हुआ छोटे राज्यों को भारत में विलय करने का काम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल की तरफ से किया गया। उस समय बुंदेलखंड की 35 स्थानीय रियासतों ने लिखित संधि की थी, जिसमें भाषा और बोली के आधार पर राज्य निर्माण का प्रस्ताव रखा गया था। इसमें अब तक कोई प्रगति नहीं हो सकी।

बुंदेलखंड का सियासी गणित
झांसी

यहां से भाजपा के अनुराग शर्मा सांसद हैं। पार्टी ने उन्हें दोबारा मैदान में उतारा है। सपा से गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। यहां के विधानसभा क्षेत्रों में झांसी की बबीना, झांसी सदर, मऊरानीपुर, ललितपुर सदर और महरौनी हैं। मऊरानीपुर अपना दल एस व अन्य चारों भाजपा के पास हैं। यहां 7.50 लाख पिछड़े, पांच लाख दलित, छह लाख सामान्य, 1.50 लाख मुस्लिम मतदाता हैं।

जालौन
यहां से भाजपा ने फिर सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा पर दांव लगाया है। वह 1996, 1998, 2004, 2014 और 2019 में सांसद चुने गए। सपा ने नारायण दास अहिरवार को उम्मीदवार बनाया है। वर्ष 2019 में भाजपा को यहां 51.45 फीसदी, बसपा को 37.44 और कांग्रेस को 7.92 फीसदी वोट मिले थे। क्षेत्र की विधानसभा सीट कालपी सपा के पास है और कानपुर देहात की भोगनीपुर, झांसी की गरौठा, जालौन की माधौगढ़, कालपी और उरई विधानसभा सीट भाजपा के पास है। यहां 7 लाख दलित, 5 लाख पिछड़े, 1.25 लाख मुस्लिम, 5 लाख सामान्य वर्ग के मतदाता हैंै।

हमीरपुर
यहां 2014 और 2019 में भाजपा के पुष्पेंद्र सिंह सांसद चुने गए और पार्टी ने फिर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। क्षेत्र में बांदा की तिंदवारी, महोबा सदर और चरखारी, हमीरपुर की राठ, हमीरपुर सदर विधानसभा सीट भाजपा के पास है। यहां से सपा ने अजेंद्र सिंह राजपूत को मैदान में उतारा है। यहां पांच लाख ठाकुर, तीन लाख ब्राह्मण, साढ़े तीन लाख दलित, डेढ़ लाख मुस्लिम, दो लाख पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं।

बांदा
यहां से भाजपा ने सांसद आरके सिंह पटेल पर दोबारा दांव लगाया है। सपा ने शिवशंकर पटेल को उतारा है। क्षेत्र में आने वाली बबेरू व चित्रकूट विधानसभा सीट सपा के पास और मानिकपुर अपना दल एस और बांदा, नरैनी भाजपा के पास है। यहां 5 लाख ओबीसी, ढाई लाख ब्राह्मण, ढाई लाख दलित, एक लाख मुस्लिम वर्ग के मतदाता हैंं।

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