खिड़की से खिड़की घुमते युपी के अस्पताल
स्वतंत्रदेश, लखनऊ:यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने पिछले 100 दिनों में 36 सरकारी अस्पतालों का दौरा किया। वे जहां-जहां पहुंचे उन अस्पतालों की खराब हालत देखकर सुधार के आदेश दिए। लेकिन, जहां नहीं गए, वहां अब तक स्थिति जस की तस है।
20 दिन में सात ऐसे अस्पातलो का निरीक्षण हुआ, जहां डिप्टी सीएम नहीं गए। कहीं एक ही बेड पर अलग-अलग बीमारियों वाले दो बच्चों का इलाज हो रहा है। कहीं स्ट्रेचर और व्हील चेयर ना होने की वजह से परिजन मरीजों को पैदल लेकर जा रहे। कहीं बंदरों के चलते मरीज आधे में ही इलाज छोड़कर भाग रहे हैं।
कानपुर के हैलट अस्पताल
एक ही बेड पर 2 से 3 बच्चों का इलाज किया जा रहा
हैलट अस्पताल के चिल्ड्रन वार्ड में न पर्याप्त बेड हैं, न ही सुविधाएं। दोनों बच्चों को अलग-अलग बीमारियां हैं फिर भी एक ही बेड पर उनका इलाज किया जा रहा।
पोस्टमॉर्टम के बाद परिवार वाले खुद पैक कर रहे डेडबॉडी
पोस्टमार्टम के बाद वहां मौजूद स्टाफ डेडबॉडी पैक करने के लिए परिवार वालों से एक से डेढ़ हजार रुपए की मांग करते हैं। कई परिवार जिनके पास पैसा नहीं होता, उन्हें खुद ही अपनों की बॉडी पैक करनी पड़ती है।अस्पताल में मौजूद कई परिजनों का कहना है, “डॉक्टर 60 से 70% दवाएं ऐसी लिखते हैं जो अस्पताल की डिस्पेंसरी में नहीं मिलती। हमें बाहर से दवा लानी पड़ती है। कई बार कीमत इतनी ज्यादा होती है कि हम मरीज को वो दवा नहीं दिला पाते। हम दवा बाहर से ही खरीद लेते तो सरकारी अस्पताल में क्यों आते।”
चित्रकूट के जिला अस्पताल
अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को बच्चा होने के बाद ही बेड दिया जाता है। यहां बैठने के लिए पर्याप्त कुर्सियां भी नहीं हैं। इसलिए गर्भवती महिलाओं को बच्चा होने तक जमीन पर ही बैठना या लेटना पड़ता है।
“मर्जी हुई तो डॉक्टर आते हैं, वरना नहीं आते”
अस्पताल में हर रोज करीब 700 मरीज OPD में आते हैं। डॉक्टर्स की केबिन खाली पड़ी रहती है, जिस वजह से मरीजों को अस्पताल में डॉक्टर के लिए भटकना पड़ता है।
यहां इलाज करा रहे मरीज कहते हैं, “24 घंटे में अगर एक बार भी डॉक्टर के दर्शन हो गए तो बहुत बड़ी बात है। अस्पताल में मरीजों को स्ट्रैचर और व्हील चेयर भी नहीं मिल पाते। यहां तक की अस्पताल का कोई कर्मचारी मरीजों की मदद के लिए भी मौजूद नहीं होता है। ऐसे में मरीजों के परिवार को ही उन्हें कभी सहारा देकर तो कभी कंधे पर उठाकर इलाज के लिए ले जाना पड़ता है।
गोंडा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र
11 साल से खाली है MBBS डॉक्टर का पद
साल 2011 में 39 लाख 76 हजार रुपए लगाकर इस स्वास्थ्य केंद्र को बनवाया गया। लेकिन अब तक यहां एक भी MBBS डॉक्टर की पोस्टिंग नहीं हुई है। पिछले 11 साल से ये पद खाली पड़ा है। ऐसे में पूरी PHC, 2017 में संविदा पर आए होम्योपैथ डॉक्टर रमेश कुमार और फार्मासिस्ट राजेंद्र पांडे के भरोसे ही चल रही है।
खुले में पड़े हैं इस्तेमाल किए हुए इंजेक्शन
अस्पताल में जगह-जगह इस्तेमाल की हुई ग्लूकोज की बोतल और इंजेक्शन खुले में पड़े हुए हैं, जिससे मरीजों को परेशानी होती है। अस्पताल में सिर्फ एक स्वीपर राजू हैं। उनका कहना है, “अस्पताल की सफाई में ही उनका पूरा दिन बीत जाता है। एक तरफ सफाई करो दूसरी तरफ गंदगी फिर फैल जाती है।