अन्तर्राष्ट्रीय

फ्रेंडशिप डे पर 5 राजनीतिक दोस्तियों की कहानिया

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:आज अंतरराष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे है। यूपी की राजनीति में भी दोस्ती की ऐसी ही कहानियां हैं। कुछ लोगों ने अपनी दोस्ती लंबे वक्त तक निभाई तो कुछ महज एक इलेक्शन की हार से दोबारा राजनीतिक दुश्मन बन बैठे।

1: अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरी और मुलायम-कांशीराम दोस्त बन गए
6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। केंद्र सरकार ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। 1993 में चुनाव था। बीजेपी को उम्मीद थी कि बाबरी विध्वंस का सीधा लाभ मिलेगा। इस बात को मुलायम सिंह और कांशीराम भी समझते थे इसलिए दोनों दोस्त बन गए।

कांशीराम के बुलाने पर मुलायम सिंह सीएम प्रोटोकॉल के साथ आते लेकिन कांशीराम उनसे बहुत नॉर्मल तरीके से मिलते।

गेस्ट हाउस कांड के बाद टूट गई दोस्ती
मायावती की जीवन पर ‘बहनजी’ किताब लिखने वाले अजय बोस ने लिखा, “कांशीराम कभी मुलायम सिंह से मिलने नहीं जाते थे। उनकी जिद होती थी कि मुलायम सिंह उनसे मिलने राज्य के अतिथि-गृह में आएं। मुलायम सिंह जब आते तब कांशीराम आधे-आधे घंटे इंतजार करवाते थे। बाद में बनियान और लुंगी पहनकर नीचे उतरते थे। कांशीराम के लगातार बदलते रुख और गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों की दोस्ती टूट गई।”

2: अमर सिंह और मुलायम सिंह की दोस्ती
अमर सिंह और मुलायम सिंह की पहली मुलाकात 1989 में उस वक्त के सीएम रहे वीर बहादुर सिंह के घर पर हुई। यहां किसी ने किसी को बहुत तवज्जो नहीं दी। मुलायम सिंह के पारिवारिक मित्र ईशदत्त यादव ने अमर सिंह के बारे में नेता जी को बताया तब जाकर दोनों की दोस्ती हुई। अमर सिंह एक साल में ही इतने खास हो गए कि 1996 में मुलायम सिंह ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया।चुनावी हार के साथ दोस्ती भी हार गए
2007 में सपा विधानसभा चुनाव हार गई। पार्टी के बागी लोगों ने कहा, अमर सिंह की दोस्ती मुलायम सिंह को ले डूबी। हालांकि, मुलायम ने अमर सिंह के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोला। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद दोनों नेताओं के बीच विवाद हो गया। 2010 में अमर सिंह ने पार्टी छोड़ दी। मुलायम सिंह कभी मनाने नहीं गए। इस तरह से 20 साल की दोस्ती का अंत हो गया।

3: मायावती और राजनाथ सिंह की दोस्ती
मायावती और राजनाथ सिंह की दोस्ती भी चुनावी परिस्थितियों के चलते बनी। 2002 के विधानसभा चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला। सपा को 143, बसपा को 98, बीजेपी को 88, कांग्रेस को 25 और रालोद को 14 सीटें मिली। पहले तो राष्ट्रपति शासन लग गया लेकिन बाद में बीजेपी और बसपा ने सरकार बनाने का फैसला कर लिया। इस बार राजनाथ सिंह नहीं बल्कि मायावती मुख्यमंत्री बनीं। उस वक्त राजनाथ की यह लाइन बहुत मशहूर हुई थी,”जीते कोई, लेकिन सरकार हम ही बनाएंगे।”राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष, पार्टी के 20 विधायक राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री के पास पहुंचे और मायावती सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र सौंप दिया। मायावती का जब तक पत्र पहुंचता तब तक बीजेपी खेल कर चुकी थी। इसके बाद राजनाथ सिंह और मायावती कभी एक मंच पर साथ नजर नहीं आए।

4.पहले योगी के फिर अखिलेश के दोस्त बने राजभर 

ओमप्रकाश राजभर 1981 से सक्रिय राजनीति में हैं। पहले कांशीराम फिर मायावती के साथ रहे। 2001 में मायावती से विवाद हुआ तो खुद की सुभासपा नाम से पार्टी बना ली। कभी क्षेत्रीय स्तर पर कभी मुख्तार तो कभी विजय मिश्रा के साथ दोस्ती निभाई। 2017 में बीजेपी नेताओं से नजदीकी बढ़ी और योगी आदित्यनाथ के साथी बन गए। सरकार बनने के एक साल बाद ही यह दोस्ती टूट गई।चुनाव के बाद अब फिर से नाराज हो गए। अब दोबारा योगी आदित्यनाथ से नजदीकी बढ़ाते नजर आ रहे हैं।

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