सुप्रीम कोर्ट ने कहा-“आमतौर पर ऑनर किलिंग यूपी और हरियाणा में होती है”, तमिलनाडु में यह कैसे?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आमतौर पर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में ऑनर किलिंग होती हैं लेकिन तमिलनाडु (Tamil nadu) में यह कैसे हो सकता है ? चीफ जस्टिस (CJI)एसए बोबडे ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘ऑनर किलिंग यूपी और हरियाणा में होती है. तमिलनाडु में ऑनर किलिंग कैसे हो सकती है?’ दरअसल, चीफ जस्टिस की बेंच एक ऑनर किलिंग मामले में ट्रायल पूरा करने की समयसीमा बढ़ाने की राज्य की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, उसी दौरान CJI ने यह टिप्पणी की|
तमिलनाडु में ओबीसी समुदाय के नेता युवराज ऑनर किलिंग की हत्या का मुख्य आरोपी है. उस पर दलित इंजीनियरिंग के छात्र गोकुलराज का अपहरण और हत्या करने का आरोप है, जो अपनी सहपाठी और एक गैर-दलित लड़की से प्यार करता था. तमिलनाडु के तिरुचेनगोडे में उसकी हत्या कर दी थी. उसे मद्रास हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी थी. बाद में शीर्ष अदालत ने उसकी जमानत रद्द कर दी थी और मुकदमे को पूरा करने के लिए 18 महीने की समय सीमा निर्धारित की थी. चूंकि ट्रायल पूरा नहीं हुआ था, अधिकारियों ने समय सीमा बढ़ाने के लिए शीर्ष अदालत की अनुमति मांगी है|
मंगलवार को सुनवाई के दौरान युवराज के वकील ने जमानत मांगी तो चीफ जस्टिस ने कहा-आपके मुवक्किल को जेल में रहना होगा. आप लोगों की जिंदगी छीन लेंगे.क्या किसी ने कोई अपराध किया है? किसी ने शादी की और आपने उसे मार दिया. वे (दंपति) लंबे समय तक जीवित रहना चाहते थे और वे आत्महत्या नहीं करना चाहते थे. वकील ने कहा कि युवराज 2015 से जेल में है और उसकी लंबित जमानत याचिका पर अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है क्योंकि ट्रायल में लंबा समय लग रहा है. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि उसके जैसे व्यक्तियों को जेल में होना चाहिए.आपने धरती से किसी को हटा दिया है.
युवराज के वकील ने कहा कि यह एक दुर्घटना थी और उसके मुवक्किल ने लड़के की हत्या नहीं की तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम समझते हैं कि आप अपने मुवक्किल को निराश नहीं कर सकते.हम सभी जानते हैं कि क्या होता है.शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु में निचली अदालत द्वारा मुकदमे को पूरा करने के लिए 6 महीने की और अवधि बढ़ा दी और जमानत याचिका खारिज कर दी.गोकुलराज का शव इरोड के पास रेलवे पटरियों पर पाया गया था. अक्टूबर 2015 में युवराज ने सरेंडर कर दिया. मई 2016 में मद्रास हाई कोर्टने जमानत दे दी थी, जिसे बाद में शीर्ष अदालत ने रद्द कर दिया था.