उत्तर प्रदेशराज्य

मज़बूरी रणनीति या राजनैतिक भूल

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं मायावती को इस चुनाव में लोग ढूंढ रहे हैं। चुनाव से चंद दिनों पहले मायावती पूरी तरह से खामोश हैं। जबकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव विजय यात्रा रथ निकाल रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी महिलाओं के बीच जनाधार मजबूत कर रही हैं। प्रचार के लिए भाजपा ने पूरी हाईकमान को यूपी में उतार दिया है। सिर्फ बसपा प्रमुख चुनाव में सक्रिय नहीं हैं।

मायावती ने 9 अक्टूबर को काशीराम स्मारक स्थल पर परिनिर्वाण दिवस मनाया था।
मायावती ने 9 अक्टूबर को काशीराम स्मारक स्थल पर परिनिर्वाण दिवस मनाया था।

 बसपा सुप्रीमो ने पिछले 90 दिन में कहां और क्या किया… 23 दिसंबर: अयोध्या जमीन घोटाले की जांच की मांग के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की। 6 दिसंबर: बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। 30 नवंबर: पार्टी कार्यालय में चुनाव पर पदाधिकारियों के साथ बैठक की। 26 नवंबर: बसपा ने भी संविधान दिवस के कार्यक्रम का बहिष्कार किया। 24 नवंबर: पार्टी ने पिछले कार्यकाल में किए विकास कार्यों का फोल्डर जारी किया। 23 नवंबर: चुनाव बैठक की। कार्यकर्ताओं को जुटने का संदेश दिया। 19 नवंबर: कृषि कानून वापस लेने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की। 9 नवंबर: बीजेपी के चुनावों वादों पर घेराबंदी करने के लिए बैठक की। 9 अक्टूबर: काशीराम की पुण्यतिथि पर प्रेस कॉन्फ्रेंस और जनसभा की।

अमित शाह ने चैलेंज दिया…बाहर निकलिए
मायावती की चुनावी साइलेंस पर अमित शाह ने भी चुटकी ली। गुरुवार को मुरादाबाद में शाह ने कहा ‘बहनजी की तो अभी ठंड ही नहीं गई है। ये भयभीत हैं। बहनजी, चुनाव आ गए हैं। थोड़ा बाहर निकलिए, बाद में ये न कहिएगा। मैंने प्रचार नहीं किया था।’बड़ी चुनावी रैलियों के लिए पहचानी जाने वाली मायावती ने 9 अक्टूबर को काशीराम स्मारक स्थल पर परिनिर्वाण दिवस मनाया था। इसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। हालांकि, इसको चुनावी रैली नहीं माना जा सकता है।
वहीं ब्राह्मणों से जोड़ने के लिए मायावती ने पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को जिम्मेदारी दी हुई है।

साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती ने 19 सीटें जीती थीं। कोर वोट बैंक ओबीसी के सहारे चुनावों में तेवर दिखाने वाली मायावती के लिए ये चुनाव थोड़ा मुश्किल भी है। बसपा के कई बड़े चेहरे पार्टी से छिटक चुके हैं। इंद्रजीत सरोज और लालजी वर्मा ने बसपा का साथ छोड़ दिया। वहीं, हाल ही में हरिशंकर तिवारी भी अपने बेटों और भांजे को सपा की साइकिल पर सवार कर चुके हैं।

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