उत्तर प्रदेशराज्य

फर्जी RT-PCR टेस्ट कराया तो मुश्किल में पड़ेगे

स्वतंत्रदेश,लखनऊ :कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बीच हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों पर लोगों की लगातार भीड़ पहुंच रही है। कोरोना नियमों के उल्लंघन के बाद राज्य सरकारों ने सख्ती बढ़ा दी है। उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों पर पहुंचने वाले लोगों के लिए कोविड प्रोटोकॉल जारी किया है। पर्यटकों के लिए 72 घंटे पहले की नेगेटिव आरटी-पीसीआर (RT-PCR) टेस्ट को अनिवार्य कर दिया है। जो पर्यटक यह रिपोर्ट साथ नहीं ला रहे हैं, उन्हें पर्यटन स्थलों में एंट्री नहीं दी जा रही है। इस बीच कई लोग ऐसे भी हैं जो फर्जी आरटीपीसीआर रिपोर्ट बनवा कर पर्यटन स्थलों पर पहुंच रहे हैं। ऐसे में इन लोगों के खिलाफ ऐक्शन भी लिया जा रहा है।

    फर्जी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट बनवाना आईपीसी और आपदा प्रबंधन अधिनियमों के तहत दंडनीय है।

फर्जी आरटी-पीसीआर रिपोर्ट बनवाना आईपीसी और आपदा प्रबंधन अधिनियमों के तहत दंडनीय है। वकीलों का कहना है कि ऐसा करने पर आईपीसी की सेक्शन में 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी के लिए सजा), 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी), 467 (मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी) और 471 (फर्जी दस्तावेज का उपयोग करना) शामिल हो सकते हैं। धारा 120 (बी) भी लागू हो सकती है यदि जाली रिपोर्ट के उपयोग में एक सहयोगी है।

तीन से 10 साल तक हो सकती है सजा
भारतीय दंड संहिता की सेक्शन 419 के अनुसार, जो भी कोई प्रतिरूपण के जरिये धोखाधड़ी करता है तो उसे किसी एक अवधि के लिए जेल जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक जुर्माना, या दोनों लगाया जा सकता है। वहीं, सेक्शन 420 में सात साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है। फर्जी रिपोर्ट मामले में यदि सेक्शन 467 के तहत अपराध साबित होता है तो 10 साल तक की जेल हो सकती है। सेक्शन 471 के तहत दो साल तक की सजा का प्रावधान है। सेक्शन 120 बी के तहत छह महीने की कैद या जुर्माना दोनों हो सकता है।

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