नमन है डॉक्टर्स का ,डॉक्टर्स डे
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :आज नेशनल डॉक्टर्स डे है। डॉक्टरों को धरती पर ईश्वर का रूप माना जाता है। कोरोना काल में तमाम डॉक्टरों ने इसे साबित भी कर दिखाया। ऐसे ही तमाम डॉक्टरों में लखनऊ के सिविल अस्पताल की कार्डियोलॉजी विभाग में तैनात डॉक्टर दीपक भी एक हैं। दीपक कोरोना की पहली लहर बेझिझक मरीजों का इलाज करते रहे। लेकिन दूसरी लहर में वे संक्रमित हो गए। इसके बाद पिता संक्रमित हो गए।
पिता को खोया पर नहीं भूले उनकी दी हुई सीख
डॉ दीपक मुख्यमंत्री आवास से महज 300 मीटर के फासले पर स्थित सरकारी सिविल अस्पताल में डॉक्टर हैं। उनके 74 साल के पिता अर्जुन चौधरी रेलवे में डिवीजनल कमर्शियल मैनेजर से सेरिटायर्ड थे। डॉक्टर दीपक कहते हैं कि वायरस के संक्रमण ने उनको गंभीर चपेट में ले लिया था। पिता अर्जुन चौधरी डायबिटीज और हार्ट के भी पेशेंट थे। पर अस्पतालों में बेड की किल्लत भारी थी, इसीलिए तमाम प्रयास के बावजूद खुद उन्हें बेड नहीं मिल रहे थे। पिता की सांसें उखड़ने लगी थीं। एक बेटा और वह भी जब डॉक्टर हो तो यह कैसे सहन कर सकता था? बाजार से ऑक्सीजन का सिलिंडर लाकर घर पर ही ऑक्सीजन का सपोर्ट देना शुरु किया। हालांकि इससे ज्यादा राहत मिली नहीं।
थक हार के 7 अप्रैल को दोपहर करीब डेढ़ बजे एक निजी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया पर यहां इलाज की व्यवस्था ही लचर हालत में थी। डॉक्टर मरीज को देखने में कोताही बरतते रहे और डॉ दीपक के पिता इलाज के अभाव में तड़पते रहे। इस लचर सिस्टम से हार मानते हुए डॉक्टर दीपक के पिता ने उसी दिन शाम 5 बजे दम तोड़ दिया।
वापस लौटे मरीजों को बचाने
डॉ दीपक कहते हैं कि यह ऐसा वक्त रहा जिसने मनोबल तोड़ने का काम किया। कोरोना संक्रमित होने के कारण खुद की भी तबियत ज्यादा बिगड़ गई थी। करीब एक महीने बाद अस्पताल में मरीजों के ईलाज के लिए वापस आ सका। पहले मन नही लगा पर पिताजी की सिखाई हुई बात से प्रेरणा लेते हुए वापस से काम मे जुटा हूं। कभी कभी नाईट ड्यूटी भी करता हूं पर मरीज के साथ कभी लापरवाही नहीं।
कोरोना से बड़ा है मानव सेवा का भाव
डॉ दीपक कहते है कि डॉक्टर सेवा भाव के मूल सिद्धांत पर काम करता है।कोरोना के दौर में जब कोई अपना करीबी आपके पास नही आता तब भी डॉक्टर नजदीक जाकर इलाज करते है और डॉक्टर का यही धर्म भी है। बस जरुरत है समाज को ऐसे लोगों का साथ देने की, यदि उन्हें कभी जरुरत पड़े तब जरुर काम आएं।