उत्तर प्रदेशराज्य

‘पानीदार’ पंचायत चुनाव , मटका लेकर हो रहा चुनावी प्रचार

स्वतंत्रदेश ,लखनऊ :मुहावरे की बोली में कहें तो पंचायत चुनाव इस बात का शक्ति परीक्षण होते हैं कि कौन कितने पानी में है और कौन पहले ही पानी-पानी हो चुका है। यह जमीनी आधार वाले चुनाव होते हैं, लेकिन बड़ी पंचायतों (विधानसभा व लोकसभा) के चुनाव में आजमाए जाने वाले हथकंडों को यहां भी भरपूर आजमाया जाता है। अच्छी बात यह रही कि इस बार सिर्फ बुरी ही नहीं अच्छी बातों को भी ग्रहण किया गया। मसलन, बुंदेलखंड में पानी ही चुनावी मुद्दा बन गया।

देलखंड में पानी हमेशा से पानी एक अहम समस्या रही है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में यह समस्या मुद्दा बनती भी रही है लेकिन गंभीरता नहीं दिखती।

उत्तर प्रदेश में 15 अप्रैल को पहले चरण के लिए वोट पड़े। कोरोना काल में भी खूब पड़े। कई जगह मतदान आंकड़ों का फीसद 70 पार कर गया। कई जगह मतदाताओं की कतार देख रात तक मत पड़े। उपद्रव भी खूब हुआ। बड़े अपराध तो नहीं, लेकिन आपस में खुन्नस खाए प्रत्याशियों ने एक दूसरे की मेहनत पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कहीं मतपेटी में पानी डालकर वोट खराब करने की कोशिश हुई तो कहीं मतपेटिका ही पानी भरे तालाब के हवाले कर दी गई। पानी का खेल खूब हुआ। हरदोई जिले की अतर्जी ग्राम पंचायत में फर्जी मतदान का आरोप लगा लोग आपस में भिड़े थे कि एक प्रत्याशी के पुत्र ने मतपेटिका पर पानी फेंक दिया। पुलिस के सामने पथराव, फायरिंग भी हुई।

कानपुर के पिपरगवां गांव में दो उम्मीदवारों के समर्थक पीठासीन अधिकारी से ही भिड़ गए। यहां मतपेटी में ही पानी डाल दिया गया। प्रयागराज की दांदूपुर ग्राम पंचायत में मतदान काíमकों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए लोगों में झड़प हो गई। यहां दो मतपेटिकाएं सीधे तालाब के हवाले कर दी गईं। झांसी के कैरोखर गांव में पीठासीन अधिकारी पर फर्जी मतदान कराने का आरोप लगाकर लोगों ने मतपत्र फाड़ दिए और मतपेटियों को बाहर फेंककर पानी डाल दिया।

इस तरह पानी ने खेल बिगाड़ा तो पानी ने खेल बनाया भी खूब। बुंदेलखंड में पानी हमेशा से पानी एक अहम समस्या रही है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में यह समस्या मुद्दा बनती भी रही है, लेकिन गंभीरता नहीं दिखती। इस बार यह पंचायत चुनाव में भी मुद्दा बन गई। बुंदेलखंड की कुछ चíचत जल सहेलियां पानी को ही मुद्दा बनाकर खुद ही चुनाव मैदान में आ गईं। दबंगई वाले इस चुनाव में आम महिलाओं की इस भागीदारी और पानी जैसे गंभीर मुद्दे के आने से चुनाव को एक अलग ही रंग मिला जो पूरे प्रचार अभियान के दौरान दिखा। जल सहेलियां अभी तक चुनावी राजनीति से दूर ही थीं और बुंदेलखंड में इनका काम पानी की समस्या की ओर लोगों का ध्यान खींचना व जागरूक करना रहा है। ये गांवों में जल संरक्षण का कार्य करती आई हैं। जब यह चुनाव मैदान में उतरीं तो उन्होंने मतदाताओं को पानी पिलाकर वोट मांगना शुरू किया। इसने सबका ध्यान खींचा। इनका कहना है कि कोई तो हो जो सिद्धांतों के आधार पर चुनाव लड़े।

बिकरू में बेखौफ चुनाव : पंचायत चुनावों में हिंसा नई बात नहीं है। खासतौर पर सत्तापक्ष समíथत उम्मीदवारों के पक्ष में पुलिस प्रशासन के ढाल बनने से कई बार नौबत आपस में भिड़ने की आ जाती है। वहीं, प्रदेश में दबंगों के ऐसे कुख्यात गढ़ भी मौजूद हैं, जहां विरोधी नामांकन ही नहीं कर पाते। यद्यपि छिटपुट हिंसा हुई, लेकिन मत पर्व पर इसका कोई बड़ा असर नहीं दिखा। सबसे ज्यादा चर्चा में रहा बिकरू (कानपुर) जहां मतदाता कतार में खड़ा होने से कतराता था, वहां बेखौफ मतदान हुआ।

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