उत्तर प्रदेशराज्य

वृंदावन कुंभ का दूसरा शाही स्नान

स्वतंत्रदेश,लखनऊ :हरिद्वार में कुंभ से पहले राधा-कृष्ण की प्रेम लीला स्थली वृंदावन में आयोजित वृंदावन वैष्णव कुंभ बैठक का आज विजया एकादशी पर दूसरा शाही स्नान है। इस मौके पर तमाम साधु-संत और श्रद्धालु यमुना में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। इससे पहले तय मार्ग पर संतों की शाही पेशवाई निकाली गई, जो श्रीबांके बिहारी के द्वार तक जाएगी। घोड़ा, ऊंट, बग्घी के साथ निकली यात्रा पेशवाई का आकर्षण बढ़ा रहे हैं। कतरब दिखाते साधु संत पेशवाई की शान बढ़ा रहे हैं। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस और प्रशासन ने खास तैयारियां की है।

पुलिन तट से निकली पेशवाई

पेशवाई यमुना के पुलिन तट से शुरू हुई। यह नगर के प्रमुख मार्गों से होती हुए निकल रही है। पेशवाई में आगे आगे तीनों वैष्णव अनि अखाड़ों के श्री महंत, चतुरः सम्प्रदाय महंत, उनके पीछे जगद्गुरु, महामंडलेश्वर, महंत, अखाड़ा धारी, खालसा प्रमुख और श्रद्धालु भव्य पेशवाई की शोभा बढ़ा रहे हैं।

अखाड़े का निशान लेकर निकले साधु संत।

इसलिए वृंदावन कुंभ का महत्व

वृंदावन कुंभ को वैष्णव कुंभ कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में वर्णन है कि वृंदावन में एक कुंड था। जिसमें कालिया नाग रहता था। उसके विष से जीवों को बचाने के लिए श्री कृष्ण इस नदी में कूदे और कालिया नाग का वध कर पानी को अमृत्व प्रदान किया।

ज्योतिषाचार्य राम भरोसी भारद्वाज के अनुसार समुद्र मंथन के बाद वरुण जी अमृत कलश लेकर वृंदावन आए और कदंब के पेड़ पर कलश लेकर बैठ गए। अमृत की कुछ बूंदें छलक कर यहां पर गिरी। इसलिए इसे पवन कुंभ कहते हैं। हरिद्वार से पहले वृंदावन में भी हर 12 साल में कुंभ की तैयारी बैठक होती आई हैं। अब महाकुंभ का ही रूप दे दिया गया है। चूंकि वृंदावन राधा-कृष्ण की प्रेम स्थली है। इसलिए इसमें नागा शैव/संन्यासी नहीं आते। केवल वैष्णव साधु/महात्मा ही आते हैं।

वृंदावन कुंभ में होंगे 4 शाही स्नान, ये है तिथियां

  • पहला 27 फरवरी माघ पूर्णिमा
  • दूसरा 9 मार्च फाल्गुन एकादशी
  • तीसरा 13 मार्च फाल्गुन अमावस
  • शाही परिक्रमा 25 मार्च रंग भरनी एकादशी

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