एनजीटी की दो टूक
स्वतंत्रदेश,लखनऊ : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हिंंडन, काली व कृष्णी नदियों में प्रदूषण से निपटने में जिम्मेदार महकमों की लापरवाही से क्षुब्ध होकर मुख्य सचिव को निगरानी सौंप दी है। अपने आदेश में एनजीटी ने कहा है कि बार-बार आदेश देने से कोई हल नहीं निकलेगा, जब तक कि प्रशासन स्वयं आमजन के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों को निभाने की जिम्मेदारी नहीं लेगा और उसके प्रति जवाबदेह नहीं होगा। अब मुुुुख्य सचिव को हिंंडन में प्रदूषण से जुड़े गंभीर मामलों का स्वामित्व लेकर उनकी फिक्र करनी होगी, क्योंकि यह मुद्दा पर्यावरण के साथ जनस्वास्थ्य के लिए भी खतरा बना हुआ है।
हिंंडन, काली व कृष्णा नदी में प्रदूषण के चलते इनके किनारे बसे 140 गांवों के लोग कैंसर व अन्य गंभीर रोगों का शिकार हो रहे हैं। मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत के उद्योग इस प्रदूषण के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार बताए गए हैं। इनसे निकलने वाले उत्प्रवाह से नदियां ही नहीं, भूजल भी विषैला हो चुका है। नए अध्ययनों में प्रदूषण के चलते ऐसे मामले कई और गांवों से भी प्रकाश में आ रहे हैं। इस मामले में गठित ओवरसाइट कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार हिंडन में 113 नाले अब भी अपना प्रदूषित सीवेज व औद्योगिक कचरा निस्तारित कर रहे हैं।
भूजल प्रदूषण के नए मामले
राज्य भूजल विभाग की हालिया रिपोर्ट में हिंंडन बेसिन के सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ व गाजियाबाद के आठ हैंडपंपों में आर्सेनिक, 79 में आयरन, 29 में मैंगनीज, 29 में फ्लोराइड, 116 में बैक्टीरिया पाए गए हैं।
विशेषज्ञ हों तैनात
फैसले में एनजीटी ने कहा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संगठनात्मक पदों पर तैनाती के लिए गाइडलाइन बनाने और अनुपालन में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया। बोर्ड में खासकर सदस्य सचिव के पद पर नौकरशाह के बजाय स्वतंत्र विशेषज्ञ को नियुक्त किया जाना था।
हिंंडन व काली नदी का पानी बेहद जहरीला
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट में हिंंडन के तीनों मॉनिटरिंंग स्थलों पर बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड 10 से 20 गुना यानी 30 से 58 मिग्रा प्रति लीटर दर्ज हुई, जबकि फीकल कॉलीफॉर्म 94000 से 11 लाख की खतरनाक संख्या में मिले हैं। तीनों ही स्थानों पर जल की गुणवत्ता ‘ई’ श्रेणी अर्थात बेहद खराब पाई गई।