महिला के इस जज्बे को सलाम
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :कोरोना संक्रमण में अपनों की पहचान के साथ दूसरों को सहारा देने का अवसर भी भरपूर मिला। विपरीत परिस्थितिथों में कई लोगों की नौकरी गई तो कुछ को अपना कारोबार ही बदलना पड़ा।राजधानी के चिनहट के लौलाइ गांव की विभा की दास्तां भी कुठ ऐसी ही है। निशातगंज में एक निजी कंपनी में काम करने वाली विभा की नौकरी लाॅकडाउन में चली गई। खुद को अपने पैरों पर खड़ा कर परिवार को चलाने के चुनौती ने भी उनके हाैसले को कभी कम नहीं होने दिया।
उनका कहना है कि एक ओर जहां दूसरे कामों में वर्क फ्रॉम होम की सुविधा कर्मचारियों को मिल रही थी। वहीं मेरी जॉब में यह संभव नहीं था। मेरे परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन के दौरान मुझे प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार की जानकारी मिली। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन कार्यालय की जानकारी हुई और मैंने प्रशिक्षण के लिए आवेदन किया। मैंने मास्क बनाना सिखा। मांग के सापेक्ष मास्क नहीं बना पाई तो अपनी जैसे महिलाओं को अपने साथ जोड़ लिया। मिशन के अधिकारियों ने काम को सराहा और फिर विभा ने 12 महिलाओं का अपना पहला समूह बना लिया। सभी को 200 से 300 रुपये की आमदनी प्रतिदिन होने लगी। खादी के मास्क की मांग कम हुई तो फिर कपड़े के सिलाई का प्रशिक्षण ले लिया। ग्रामीण आजीविका मिशन के सुखराज बंधु की मदद से कारोबार आगे बढ़़ता गया।
कम पढ़ी लिखी महिलाओं को दिलाती हैं योजनाओं का लाभ
खुद के कारोबार से जोड़ने के साथ ही विभा कम पढ़ी लिखी जरूरतमंद महिलाओं को सरकारी योजनाओं जैसे विधवा पेंशन, विवाह अनुदान, शौचालय का निर्माण का लाभ दिलाकर महिलाओं की सेवा करती हैं। अब तो अधिकारी भी उनके नाम से ही कम करने में विश्वास करने लगे हैं। विभा का कहना है कि विकास के इस डिजिटलइ युग में ईमानदारी व मेहनत का अभी भी कोई विकल्प नहीं है। मदद का तरीका बदल गया है, लेकिन आपकी सेवा कभी बेकार नहीं जाती। आजीविका मिशन के निदेशक सुजीत कुमार और मनोज कुमार के हौसले से ही हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं। नारी अपने सम्मान के साथ वह सबकुछ कर सकती है जो नारी को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए जरूरी है।