यूक्रेन से लौटे छात्रों का भविष्य अधर में
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:गोविंदपुर के रहने वाले कामेश्वर पांडेय टाटा कमिंस के कर्मचारी है। उन्होंने बमुश्किल पैसा इकट्ठा कर अपनी बिटिया सृष्टि को यूक्रेन में एडमिशन कराया था। पिता का सपना बेटी को डॉक्टर बनाना था। लेकिन अब ना सिर्फ कामेश्वर पांडेय बल्कि उनके जैसे हजारों परिवारों के सपनों पर संकट के बादल छा गए हैं।

सृष्टि खारकीव नेशनल मेडिकल कॉलेज में चौथे साल की छात्रा हैं। उन्होंने बताया, चार साल में लगभग 35 लाख के आसपास खर्च हो गए। अगला सेमेस्टर के लिए फीस भी जमा कर दिया था। लेकिन हालात ऐसे थे कि भारत लौटना पड़ा। यूक्रेन में फिलहाल जो हालात है, मुझे नहीं लगता कि दस सालों तक वापस आ पाऊंगी। मैं अब अपने करियर को लेकर काफी चिंतित है। कैसे मैं डाक्टर बन पाऊंगी।सृष्टि जैसे शहर में कम से कम एक दर्जन से अधिक बच्चे हैं, जो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण देश लौटकर आ गए। किसी ने दो साल की पढ़ाई पूरी की तो किसी ने चार साल की। इन बच्चों के आंखों के सामने एक ही सवाल तैर रहा है, आगे की पढ़ाई कैसे पूरी होगी? क्या उन्हें भारत में पढ़ाई पूरी करने की अनुमति मिलेगी, या फिर यूक्रेन के हालात सुधरने का इंतजार करना होगा।
हाल ही में नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने कहा है कि यूक्रेन से लौटे छात्र एक साल का बाध्यकारी इंटर्नशिप भारत में ही पूरा कर सकते हैं। लेकिन उन्हें फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन (एफएमजीए) की परीक्षा पास करनी होगी। फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंस रेगुलेशन 2021 लागू करने के बाद छात्र स्टेट मेडिकल काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
अगर छात्र को 18 नवंबर 2021 से पहले फॉरेन मेडिकल डिग्री या प्राइमरी क्वालिफिकेशन मिल गई है या अगर छात्र ने 18 नवंबर 2021 से पहले विदेशी संस्थान में मेडिकल की अंडरग्रेजुएट पढ़ाई के लिए दाखिला लिया था या फिर जिन्हें केंद्र सरकार ने विशेष नोटिफिकेश के ज़रिए छूट दी है उन पर फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंस रेगुलेशन 2021 लागू नहीं होगा।