बांके बिहारी मंदिर: कॉरिडोर का रास्ता साफ… अब पीएम से बजट की आस
स्वतंत्रदेश ,लखनऊतीर्थनगरी मथुरा के वृंदावन स्थित बांके बिहारी कॉरिडोर का रास्ता साफ हो गया है। अब प्रशासन बजट की ओर टकटकी लगाए हुए है। दरअसल, बजट मंजूरी के बाद ही प्रशासन जमीन अधिग्रहण से लेकर आगे की अन्य कार्रवाई की ओर कदम बढ़ा सकेगा। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, 300 करोड़ रुपये का बजट जमीन अधिग्रहण के लिए चाहिए।
इसके बाद 505 करोड़ रुपये कॉरिडोर निर्माण के लिए चाहिए। इसके बाद वर्तमान बांके बिहारी मंदिर के जीर्णोद्धार पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च होने का आकलन लगाया जा रहा है। प्रशासन को अंदेशा है कि पूरे प्रोजेक्ट में करीब एक हजार करोड़ रुपये का खर्च आएगा। संभव है कि पीएम मोदी राज्य सरकार की मदद करते हुए केंद्र सरकार से इस प्रोजेक्ट के लिए विशेष बजट का ऐलान कर दें।दरअसल, 23 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी मथुरा में ब्रज रज उत्सव में मीराबाई की 525 वीं जयंती के मौके पर शिरकत करने आ रहे हैं। इससे पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट में बांके बिहारी कॉरिडोर प्रकरण में प्रतिदिन सुनवाई हुई और 20 नवंबर को फैसला सुनाए जाने की तिथि तय हुई। तिथि नियत होने के बाद संभावना जताई गई थी कि फैसला कॉरिडोर में पक्ष में आएगा तो पीएम खुद इसके बजट का एलान ब्रज रज के मंच से कर सकते हैं। अब फैसला आ चुका है। सिर्फ बजट को लेकर प्रशासन असमंजस में है। प्रशासन उम्मीद लगाए बैठा है कि पीएम खुद बजट का ऐलान करेंगे, जिससे जल्द पैसा जारी होगा और जल्द ही कॉरिडोर धरातल पर आ जाएगा।
नियमावली बदलाव को याचिका भी कोर्ट में लंबित
बांके बिहारी कॉरिडोर का रास्ता तो साफ हो गया है। मगर, अभी कई बिंदुओं पर अभी स्पष्टता बाकी है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बांके बिहारी मंदिर के संचालन की नियमावली है। अभी तक नियमावली के अनुसार मंदिर प्रबंधन को प्रशासनिक व्यवस्थाओं के साथ ही पूजा-पाठ का अधिकार है। माना जा रहा है कि जिस तरह बाबा विश्वनाथ काशी कॉरिडोर बना। वहां पर प्रशासनिक व्यवस्थाएं स्थानीय प्रशासन के हाथ में चली गईं। वहीं पूजा-पाठ की व्यवस्था वहां के न्यास के पास रही। ठीक उसी प्रकार से बांके बिहारी मंदिर एवं कॉरिडोर की प्रशासनिक व्यवस्थाएं प्रशासन के हिस्से में जा सकती हैं और पूजा-पाठ का जिम्मा सेवायतों के पास रह सकता है। हालांकि 1939 में हाईकोर्ट के निर्देशन में बनी नियमावली में बदलाव को एक याचिका भी कोर्ट में लंबित है। उस पर भी सुनवाई चल रही है।हाईकोर्टद्वारा बांके बिहारी कॉरिडोर बनाने का रास्ता साफ करने के बाद प्रशासन अब इसके जमीन अधिग्रहण की दिशा में विचार करने में जुट गया है। 300 के करीब निर्माणों को हटाने के लिए चिह्नित पहले ही किया जा चुका है। मगर, अब फिर प्रशासन एक बार पुख्ता सर्वे कराने और जमीन की एवज में दिए जाने वाले मुआवजे की कीमत तय करने में जुट गया है। यह पूरा खाका राज्य सरकार को भेजा जाएगा। उसी अनुसार जमीन अधिग्रहण के लिए मुआवजा राशि जारी होगी। बांके बिहारी कॉरिडोर के लिए 5.65 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। स्थानीय लोगों को जमीन देने के लिए मनाना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही प्रशासन आगे की दशा में कदम बढ़ाएगा।