मंकीपॉक्स के खतरे में यूपी के लोग
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:केरल और पड़ोसी राज्य दिल्ली के बाद अब यूपी में भी मंकी पॉक्स का खतरा मंडरा रहा है। गाजियाबाद में 2 लड़कों को मंकी पॉक्स का संदिग्ध मरीज माना गया है। नमूने पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में जांच के लिए भेजे गए हैं।
मेडिकल एक्सपर्ट के मुताबिक यूपी के करीब 10 करोड़ लोग मंकीपॉक्स की चपेट में आ सकते हैं। क्योंकि 45 साल से कम उम्र के लोग सॉफ्ट टारगेट साबित हो रहे हैं। छोटे बच्चे और गे कम्युनिटी-ट्रांसजेंडर्स इस संक्रमण के डेंजर जोन में रहते हैं। इसलिए KGMU लखनऊ में टेस्टिंग शुरू करने की तैयारी है।
भारतीय मूल के स्वीडन बेस्ड मेडिसिनल साइंटिस्ट प्रो. राम उपाध्याय के मुताबिक 1978 के बाद पैदा हुए लोग यूपी में ज्यादा हैं। इसके पीछे का तर्क देते हुए वो बताते हैं कि देश में 1978 तक स्माल पॉक्स की वैक्सीन सभी जन्म लेने वाले बच्चों को लगाई जाती थी। जिस किसी को भी ये वैक्सीन लगी होगी। उनके लिए ऑर्थो पॉक्स फैमिली के खिलाफ शरीर में पहले से ही लांग टर्म इम्युनिटी होगी।
इस बीच स्मॉल पॉक्स के इरेडिकेशन की बात सभी ने मानी। यही कारण रहा कि नवजात बच्चों को ये वैक्सीन देना बंद कर दी गई। इसीलिए 1978 या उसके बाद जन्म लेने वालों को ये वैक्सीन नहीं लगाई गई। दूसरें शब्दों में कहे तो 44 साल से कम उम्र के लोग मंकीपॉक्स के सीधे टारगेट पर है। इस ऐज ग्रुप में आने वालों की संख्या अकेले यूपी में 10 करोड़ से ज्यादा है।
द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की गाइडलाइन को समझिए।
- ऐसे शख्स, जिन्होंने पिछले 21 दिनों में संक्रमण प्रभावित देशों का दौरा किया हो।
- अगर बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द और कमजोरी जैसी शिकायत है।
- उसे आइसोलेट करके उसकी जांच की जाए।
- नमूनों की जांच के लिए पुणे में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में सैंपल भेजे जाएंगे
- गे कम्युनिटी में ज्यादा खतरा
- इस संक्रमण की जद में आने वाले ज्यादातर लोग गे कम्युनिटी से है। प्रो. राम उपाध्याय कहते है, “गे कम्युनिटी या ट्रांसजेंडर्स को इस वायरस से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। मेन टू मेन सेक्सुअल इंटरकोर्स के दौरान इस वायरस के लिजेन्स ट्रांसफर हो सकते है।