कम उम्र के लोग मंकीपॉक्स के सॉफ्ट-टारगेट
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:महज 5 वीक के भीतर दुनियाभर के 41 देशों के 1665 लोगों को अपनी जद में ले चुके मंकीपॉक्स को लेकर एक चौकाने वाला खुलासा सामने आया है। विशेषज्ञों की माने तो भारत में 45 साल से कम उम्र की आबादी मंकीपॉक्स के लिए सॉफ्ट टारगेट साबित हो सकती है। खास बात यह है कि इनमें छोटे बच्चे और गे कम्युनिटी और ट्रांसजेंडर्स को मंकीपॉक्स से संक्रमित होने की संभावना पहले ही जताई जा चुकी है।
वैश्विक महामारी कोरोना की मंकीपॉक्स से तुलना के सवाल पर कुछ एक्सपर्ट दावा कर रहे थे कि मंकीपॉक्स के तेजी से नए वैरिएंट नही बन रहे है। पर अब इंटरनेशनल जर्नल और रिसर्च से खुलासा हुआ है कि अब मंकीपॉक्स भी साल भर में 47 से ज्यादा नए वैरिएंट इवॉल्व कर चुका है। इसमें खतरे की घंटे यह है कि पहले यह वायरस साल में महज 1 या ज्यादा से ज्यादा 2 वैरिएंट का ही रुप लेता रहा है पर अब इसमें बदलाव देखा गया है।
दुनियाभर में मंकीपॉक्स के 2 वैरिएंट
- पहला: कांगो बेसिन वैरिएंट,1200 पॉजिटिव केस,10 फीसदी तक हाई मोर्टेलिटी होती है। 58 लोगों के लिए जानलेवा साबित हो चुका है।
- दूसरा वैरिएंट: वेस्ट अफ्रीकन वैरिएंट -नाइजीरिया वैरिएंट भी इसे नाम दिया गया। 1978 से 2017 तक इस वैरिएंट से संक्रमितों की संख्या महज एक रही।
- नन्हे मुन्हे बच्चों को भी मंकीपॉक्स से बचाना है। इसके अलावा गे कम्युनिटी के बीच इसके फैलने के ज्यादा चांस है। उन्हें भी सतर्क रहने की जरूरत है। सरकार को भी अपने स्तर से तैयारियों को पूरा करने की समय आ गया। मानसून का समय संचारी रोगों के फैलने का मुफीद समय होता है, यही कारण है कि इस दौरान सबसे ज्यादा सतर्कता बरतनी होगी। यूपी में इसके लिए टास्क फोर्स और एक्सपर्ट पैनल कमेटी को भी अलर्ट मोड़ में रखने की जरूरत है। यदि मंकीपॉक्स यहां फैला तो इसके चपेट में आने वाले बेहिसाब होंगे, और इसके लिए बड़ी संख्या में आइसोलेटेड वार्ड और बाकी चीजों की जरूरत पड़ेगी। यही कारण है कि अब इसकी वैक्सीन की दिशा में ठोस कदम उठाने का समय आ गया है। जैसे कोरोना की भारतीय वैक्सीन डेवेलप की गई है, इसके लिए भी तैयार की जानी चाहिए।