जानिए इससे पहले कब हुई थी राज्यसभा में निलंबन की अभूतपूर्व कार्रवाई और फाड़ा गया था बिल
मानसून सत्र में कृषि बिल को लेकर राज्यसभा में रविवार को विपक्षी सांसदों ने भारी हंगामा किया था। इस दौरान रूल बिल की कापी फाड़ी गई थी और राज्य सभा की वेल में जाकर विपक्षी सांसदों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। सोमवार को सभापति वेंकैया नायडू ने कार्रवाई करते हुए 8 सदस्यों को एक हफ्ते के लिए सदन से निलंबित कर दिया है। इन सांसदों में डेरेक ओ’ब्रायन, संजय सिंह, राजीव सातव, केके रागेश, रिपुन बोरा, डोला सेन, सैयद नजीर हुसैन और एलामरम करीम शामिल हैं। इसके साथ ही राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को भी सभापति ने खारिज कर दिया है। राज्यसभा के सदस्यों के निलंबन के लिए संसदीय कार्यमंत्री नियम 256 के तहत प्रस्ताव लाकर कार्रवाई की गई।
इससे पहले 5 मार्च, 2020 को सदन की कार्यवाही में बाधा पहुंचाने और खराब व्यवहार के लिए कांग्रेस के लोक सभा के सात सांसदों को सत्र के अंत तक के लिए निलंबित किया गया था। इनमें गौरव गोगोई, टी एन प्रथपन, डीन कुरीकोस, मनिक टैगोर, राजमोहन उन्नीथन, बेनी बेहानन और गुरजीत सिंह औजला शामिल थे।
मार्च 2010 को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल के विरोध में भारी हंगामे के कारण 7 सांसदों को निलंबित किया गया था। उस दौरान राज्यसभा के चेयरमैन हामिद अंसारी थे। इस दौरान सदन में बिल को फाड़ा गया था और वेल में जाकर कार्यवाही को बाधित करने का प्रयास किया गया था। इन सांसदों को सत्र के आखिर तक के लिए निलंबित किया। इन सांसदों को 108 वें संविधान संशोधन विधेयक पर बहस शुरू होने से पहले मार्शलों द्वारा सदन से बेदखल किया गया। आरक्षण बिल पर संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था। निलंबित किए सांसदों में राजद के सुभाष यादव, समाजवादी पार्टी के कमाल अख्तर, वीरपाल सिंह यादव, नंद किशोर यादव और अमीर आलम खान, लोकजनशक्ति पार्टी के साबिर अली और जदयू के एजाज अली शामिल थे।