पार्टियों ने खेला ब्राह्मण कार्ड
स्वतंत्रदेश,लखनऊ :अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे जीतने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां हर तरह का हथकंडा अपनाने में जुटी हैं। कोई धर्म के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर वोट मांग रहा है। मायावती को भी 14 साल बाद ब्राह्मणों की याद आई है। सबसे पहले 2007 में मायावती ने ब्राह्मण-दलित की सोशल इंजीनियरिंग की थी। तब ब्राह्मणों ने दिल खोलकर मायावती को वोट दिया और वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक भी पहुंच गईं।
यूपी की सियासत में ये दूसरी बार था जब ब्राह्मणों ने परंपरागत पार्टी कांग्रेस और BJP को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी को एकजुट होकर वोट किया हो। इससे पहले जनेश्वर मिश्र के रहते बड़ी संख्या में ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से भी जुड़े थे।
सपा-बसपा में मूर्ति लगाने की होड़
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी के तीन ब्राह्मण नेता -अभिषेक मिश्र, मनोज पांडे और माता प्रसाद पांडे को ब्राह्मणों को एक करने के लिए लगाया है। अभिषेक मिश्र की ओर से लखनऊ में 108 फीट की परशुराम की प्रतिमा लगाने की घोषणा की गई है। सपा की इस घोषणा के कुछ घंटे बाद ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि अगर वह 2022 में सत्ता में आएंगी तो भगवान परशुराम की इससे भी ऊंची प्रतिमा लगाएंगी। यही नहीं उन्होंने तो पार्क और अस्पताल के नाम भी परशुराम के नाम पर करने की भी घोषणा कर दी।
यूपी में ब्राह्मण क्यों जरूरी?
यूपी की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व हमेशा से रहा है। आबादी के लिहाज से प्रदेश में लगभग 13 % ब्राह्मण हैं। कई विधानसभा सीटों पर तो 20% से ज्यादा वोटर्स ब्राह्मण हैं। ऐसे में हर पार्टी की नजर इस वोट बैंक पर टिकी है।
बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मणों का वोट 15% से ज्यादा है।
रूठे ब्राह्मणों को मनाने के लिए BJP का दांव
BJP ने भी नाराज चल रहे ब्राह्मणों को मनाने के लिए दांव चल दिया है। कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जितिन प्रसाद को पार्टी में लाना BJP का पहला कदम माना जा रहा है। अजय मिश्र टेनी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करना दूसरा सबसे बड़ा कदम है। इसके अलावा पार्टी की कोशिश होगी कि वह डॉ. दिनेश शर्मा, रीता बहुगुणा जोशी की बदौलत ज्यादा से ज्यादा ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़े रखे।