उत्तर प्रदेशराज्य

स्मारक घोटाले की जांच भी तेज

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मियों के साथ जांच एजेंसियों की सक्रियता भी बढ़ने लगी है। जांच एजेंसियों ने कई बड़े घोटालों की जांचों में अपने कदम बढ़ाए हैं। इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल भी तेज हो गई है। इसी बीच स्मारक घोटाले को लेकर बहुजन समाज पार्टी के शासनकाल के दो पूर्व मंत्रियों से भी पूछताछ की तैयारी है।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मियों के साथ जांच एजेंसियों की सक्रियता भी बढ़ने लगी है।

सीबीआइ ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 1500 करोड़ रुपये की गोमती रिवर फ्रंट योजना में घोटाले की कड़ियां खोलनी शुरू कर दी हैं। रिवर फ्रंट घोटाले में दूसरी एफआइआर दर्ज करने के बाद सीबीआइ ने सोमवार को आरोपितों के 49 ठिकानों पर छापेमारी की बड़ी कार्रवाई की है। इसके बाद इस घोटाले में अब कई बड़ों की भूमिका की छानबीन के संकेत मिले हैं।

ऐसे ही बसपा शासनकाल में हुए करीब 1400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले की जांच सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) करीब सात वर्षों से कर रहा है। लोकायुक्त संगठन ने वर्ष 2013 में स्मारकों के निर्माण में धांधली के आरोपों की जांच की थी। लोकायुक्त की जांच में करीब 1400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। बाद में विजिलेंस ने एक जनवरी, 2014 को लखनऊ के गोमतीनगर थाने में स्मारक घोटाले में 199 आरोपितों के विरुद्ध एफआइआर दर्ज कराकर जांच शुरू की थी।

सपा शासनकाल में हुए खनन घोटाले की भी सीबीआइ जांच चल रही है और इस मामले में पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति जेल में हैं। खनन घोटाले में भी कई आइएएस अधिकारियों समेत सफेदपोशों की भूमिका जांच के दायरे में है और उन पर भी कार्रवाई की तलवार लटक रही है। ईडी भी इस मामले में जांच कर रहा है और आरोपितों की संपत्तियां भी जब्त कर चुका है।

बसपा शासनकाल में हुए चीनी मिल घोटाले की सीबीआइ जांच ने भी बीते दिनों तेजी पकड़ी थी। जलनिगम भर्ती घोटाले में सपा सरकार के पूर्व मंत्री आजम खां की मुश्किलें पहले ही बढ़ चुकी हैं। हालांकि बीते दिनों कोरोना संक्रमण के चलते जांच एजेंसियों के कदम भी ठिठके हुए थे। स्थितियां सामान्य होने के बाद जांच की रफ्तार बढऩी शुरू हो गई है। इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं।

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