कर्मचारियों को दिया बड़ा झटका
स्वतंत्रदेश लखनऊ : सितंबर 2019 में कैरिज व वैगन वर्कशॉप में तैनात इंजीनियर मनीष मिश्र की तबियत बहुत खराब हो गई। वह उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल से संबद्ध एक निजी अस्पताल में उपचार कराने पहुंचे। उनके उपचार पर कुल 9.60 लाख रुपये का खर्च आया।
रेलवे इंजीनियर की ही तरह बड़ी संख्या में संबद्ध निजी अस्पतालों में उपचार कराने वाले रेलकर्मियों के सामने भी बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने रेलवे की ही व्यवस्था के तहत अपने खर्चे पर, ऋण लेकर उपचार तो करवा लिया है। लेकिन अब उनके लाखों रुपये के बिलों की प्रतिपूर्ति पर संकट खड़ा हो गया है। दरअसल जोनल रेलवे हर साल चिकित्सा मद में भी बजट का आवंटन करता है। मेडिकल उपकरणों की खरीद सहित कई मद में खर्चों के लिए वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए लखनऊ रेल मंडल प्रशासन ने 7.89 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। हालांकि कोरोना के कारण रेलवे ने अपना बजट पुनरीक्षित कर 18.70 करोड़ रुपये कर दिया। रेलवे बोर्ड ने इस फंड आवंटन पर सहमति नहीं दी। जिस कारण दोबारा बजट को 18.70 करोड़ की जगह 10.94 करोड़ रुपये किया गया।
इस बजट से रेलवे को कोविड केयर सेंटर की तैयारी और कोरोना से बचाव के लिए जरूरी सामान पर खर्च करना पड़ा। अब रेलवे के पास कर्मचारियों के लंबित मेडिकल प्रतिपूर्ति के बिलों के भुगतान के लिए कोई फंड ही नहीं बचा है।
एनआरएमयू मंडलमंत्री आरके पांडेय ने कहा कि बड़ी संख्या में रेलकर्मी निजी अस्पतालों में उपचार के बाद अपने बिल की प्रतिपूर्ति के लिए परेशान हैं। उन्होंने कर्जा लेकर या उधार मांगकर अपना उपचार करवाया है। नार्दर्न रेलवे मेंस यूनियन इसे लेकर पिछले दिनों उत्तर रेलवे के जीएम आशुतोष गंगल से मिली थी। जीएम से जल्द ही भुगतान की मांग की गई है।