जाट का अस्तित्व या जयंत चौधरी की विरासत
स्वतंत्रदेश,लखनऊ:रालोद मुखिया जयंत चौधरी को राजनीति विरासत में मिली है। उनके दादा चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री रहे हैं। हापुड़ चरण सिंह की जन्मस्थली है। पिता अजित सिंह केंद्र में कई बार मंत्री रह चुके हैं। अब जयंत पर दादा और पिता की तरह अपनी चौधराहट साबित करने का दबाव है। वहीं, सपा से रालोद के गठबंधन के बाद जाट समुदाय में अपना अस्तित्व बचाने का सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जयंत के परिवार का जो दबदबा है, वह मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बने नए राजनीतिक समीकरणों में कम हुआ है। जयंत की परीक्षा पहले चरण के चुनाव में ही है।
कोरोना की दूसरी लहर में पिछले साल मई में चौधरी अजित सिंह की मृत्यु हो गई। इसके बाद रालोद की जिम्मेदारी जयंत के कंधों पर आ गई। जयंत ने सपा के साथ गठबंधन किया है। जाटों को सपा के साथ गठबंधन रास नहीं आ रहा है। कारण भी साफ है। मुजफ्फरनगर का कवाल गांव जिसे जाट भूल नहीं पा रहे हैं। जाटों ने पिछले चुनाव में खुलकर भाजपा को समर्थन दिया था। करीब एक साल तक चले किसान आंदोलन के चलते भाजपा और जाटों के बीच दूरी आई। इसे पाटने के लिए पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में सांसद प्रवेश वर्मा के घर जाटों को बुलाकर मनाया। इससे दोनों के रिश्ते में मिठास आई है।
भाजपा ने भी चौधरी चरण सिंह के रिश्ते के पौत्र को उनकी जन्मस्थली से प्रत्याशी बनाया है। यही कारण है कि जयंत के सामने विरासत को बचाने की चुनौती है। पिछले दिनों अखिलेश और जयंत की जोड़ी जब यहां आई तो दोनों ने चौधरी चरण सिंह की जन्मस्थली से अपने आत्मीय संबंध दर्शाने की पूरी कोशिश की। क्षेत्र में अभी जो माहौल है, वह बताता है कि राह आसान नहीं है।