अमेरिका और चीन के बीच शीत युद्ध की दस्तक
स्वतंत्रदेश,लखनऊ : ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी चरम पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका में भले ही सत्ता परिवर्तन को लेकर सियासी संकट चल रहा हो, लेकिन चीन को लेकर उसकी धारणा साफ है। अमेरिका ने हाल ही में चीन की वायु रक्षा क्षेत्र में बमवर्षक विमान भेज कर उसे सावधान किया था। अमेरिका का यह कदम चीन को खुली चेतावनी थी। अमेरिका ने साफ संदेश दिया कि चीन अपनी हरकतों से बाज आए नहीं तो अमेरिकी सेना की क्षमता उसके घर के अंदर जाकर मारने की क्षमता रखती हैं।
चीन ने हमेशा से ताइवान को अपने एक प्रांत के रूप में देखा है, जो उससे अलग हो गया है। हालांकि, बीजिंग का पक्का विश्वास है कि भविष्य में ताइवान चीनी का हिस्सा बनेगा। उधर, ताइवान की एक बड़ी जनसंख्या अपने आपको एक अलग देश के रूप में मानती रही है। चीन और ताइवान के बीच संघर्ष का मूल कारण यही है। वर्ष 2000 में ताइवान की सत्ता चेन बियान के हाथों में आई। चेन ताइवान के राष्ट्रपति चुने गए।
अमेरिका का सातवां बेड़ा ताइवान की पहरेदारी के लिए तैनात
वर्ष 1949 में चीन में चल रहे गृहयुद्ध के अंत में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओत्से तुंग ने पूरे चीन पर अपना अधिकार कर लिया। उस वक्त राष्ट्रवादी विरोधी नेताओ और उनके समर्थक ताइवान की ओर रुख कर गए|
ताइवान यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना
ताइवान एक राष्ट्र न होते हुए भी उसकी अपनी सरकार है। उसका अपना राष्ट्रपति है। अपनी मुद्रा है। अपनी सेना है। इन सबके बावजूद ताइवान को संपूर्ण राष्ट्र का दर्जा हासिल नहीं है। आधिकारिक तौर पर इसका नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है।