गंगा प्रदूषण का मामला NGT में स्थानांतरित
स्वतंत्रदेश , लखनऊ;इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2006से विचाराधीन गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण नई दिल्ली में होगी। राज्य सरकार की आपत्ति की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका अधिकरण को स्थानांतरित कर दिया है। हालांकि याची अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व सुनीता शर्मा ने कहा वह हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।याचिका की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति मनोज गुप्ता तथा न्यायमूर्ति अजित कुमार की पूर्ण पीठ ने फैसला सुरक्षित कर लिया था और शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र की दलील स्वीकार कर ली है।महाधिवक्ता का कहना था कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया है। गंगा प्रदूषण सहित इससे जुड़े सभी मामलों की सुनवाई के लिए एनजीटी का गठन किया गया है। वैकल्पिक उपचार के नाते गंगा से जुड़ी इस याचिका को भी अधिकरण में सुनवाई के लिए भेजा जाय। हालांकि याची अधिवक्ता ने इसका विरोध किया।कहा कि गंगा प्रदूषण के अलावा शहर की अन्य समस्या भी याचिका से जड़ी है।लगभग एक दर्जन याचिकाओं की एक साथ सुनवाई होती है। यमुना प्रदूषण मामला भी जुड़ा हुआ है। सरकार कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं कर रही है । इसलिए तकनीकी आधार पर याचिका की सुनवाई टालने की कोशिश की जा रही है।
गंगा प्रदूषण मामले की याचिका स्वामी हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने दाखिल की थी। किंतु बाद में कोर्ट ने इसे गंगा प्रदूषण मामले के रूप में तब्दील कर सुनवाई जारी रखी। याचिका की सुनवाई के दौरान गंगा कछार में लगातार बढ़ रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए हाईकोर्ट ने 1973की अधिकतम बाढ़ विंदु को आधार मानकर कर उससे 500मीटर तक निर्माण पर रोक लगा दी।केवल गंगा में प्रदूषण न करने वाले मठ मंदिरों के निर्माण व पुराने भवन के पुनर्निर्माण की अनुमति दी गई।साथ ही मांग मेले के दौरान पालीथिन की खरीद फरोख्त पर रोक लगा दी। कोर्ट की सख्ती के कारण सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बने और गंगा में सीधे गिरने वाले नालों को बायोरेमेडियल सिस्टम से शोधन की व्यवस्था अपनाई गई। हालांकि कि सरकारी मशीनरी की उदासीनता व ब्लेम गेम के कारण कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया जा सका।कोर्ट की 500मीटर में निर्माण पर रोक के कारण संगम किनारे ओमेक्स सिटी योजना का कुछ हिस्सा खटाई में पड़ गया। हालांकि निर्माण पर रोक के आदेश को शासनादेश के तहत दो सौ मीटर तक समेटने की ओमेक्स सिटी के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने कोशिश की और कहा कि याचिका स्थानांतरित करते समय पुराने सभी आदेश खत्म कर दिए जाए। याचिका पर भारत सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता बाल मुकुंद सिंह, न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता, शैलेश सिंह,वीसी श्रीवास्तव ने पक्ष रखा था।