उत्तर प्रदेशराज्य

समाज कल्याण विभाग के तबादलों में हुई जमकर मनमानी

स्वतंत्रदेश , लखनऊ:समाज कल्याण विभाग में पिछले साल बाबुओं के तबादलों में जमकर मनमानी की गई। साथ ही निदेशालय से पूछा है कि स्थानांतरण नीति एवं इस संबंध में कार्मिक विभाग के शासनादेश के उल्लंघन और अनियमितता के लिए कौन जिम्मेदार है। उनके खिलाफ क्या कार्रवाई प्रस्तावित है?

मुख्यमंत्री कार्यालय से शासन को जांच के आदेश दिए गए। स्थानांतरण वर्ष 2022-23 के तहत लिपिक संवर्ग के कर्मियों के स्थानांतरण की जांच और परीक्षण में पाया गया कि समाज कल्याण विभाग में 3 वर्ष से अधिक अवधि से कार्यरत लिपिकों की कुल संख्या 253 थी, जिनमें से 52 कार्मिक विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत स्थानांतरण से मुक्त थे। ये श्रेणियां हैं-दिव्यांगता, दाम्पत्य, गंभीर बीमारी, 2 वर्ष के भीतर सेवानिवृत्ति और उर्दू अनुवादक।

शासन की रिपोर्ट में कहा गया है कि शेष 201 कर्मी स्थानांतरण नीति की परिधि में थे, जिनमें से कुल 43 कर्मियों का स्थानांतरण किया गया। ये 43 कर्मी भिन्न-भिन्न अवधियों से तैनात थे। यहां तक कि स्थानांतरण परिधि में न आने वाले 4 कर्मियों का भी स्थानांतरण किया गया। यहां पर विभाग के स्तर से यह अपेक्षित था कि सर्वाधिक अवधियों यानी 20 वर्ष, 15 वर्ष या 10 वर्ष से तैनात कर्मियों को स्थानांतरण में वरीयता दी जाती, जोकि नहीं किया गया।अगर स्थानांतरण का 10 प्रतिशत निर्धारित कोटा समाप्त हो गया था और 3 वर्ष से अधिक अवधि से तैनात कर्मियों का स्थानांतरण निदेशालय स्तर से संभव नहीं था तो प्रस्ताव मंत्री के अनुमोदन के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए था, जोकि नहीं कराया गया। विशिष्ट आवश्यकता के मद्देनजर स्थानांतरण नीति से विचलन के लिए कोई प्रस्ताव मुख्यमंत्री के अनुमोदन के लिए भी उपलब्ध नहीं कराया गया। इस तरह विभाग ने स्थानांतरण नीति की मूल भावना को ध्यान में नहीं रखा। पिछले साल तत्कालीन प्रमुख सचिव ने मामले से संबंधित एक कार्मिक के निलंबन के लिए भी लिखा था, पर इस पर अमल नहीं हुआ। यहां बता दें कि विगत वर्षों में समाज कल्याण विभाग की छात्रवृत्ति, पारिवारिक कल्याण लाभ और शादी अनुदान समेत तमाम योजनाओं में बड़े घपले सामने आ चुके हैं। इन घपलों में 20-20 साल से जमे इन बाबुओं की मिलीभगत भी सामने आती रही है।

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