उत्तर प्रदेशराज्य

अखिलेश सदन में 91 मिनट बोले,पिछड़ों की गोलबंदी 

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:विधानसभा के बजट सत्र में बुधवार को नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव पूरे 91 मिनट बोले। उन्होंने कभी हंसकर तो कभी कटाक्ष भरे अंदाज में कई मुद्दों पर सवाल किए। बार-बार जातीय जनगणना का मुद्दा उठाया। खेती और फसलों की बात करके किसानों और रोजगार का जिक्र करते युवाओं को छूने की कोशिश की।

सिर्फ यही नहीं, कानपुर देहात में मां-बेटी की जिंदा जलकर मौत पर कानून व्यवस्था पर घेरा। लोकगायिका नेहा को नोटिस देने पर तंज किया। कहा-मैंने तो अपनी कार्टून की बुक छपवाई थी। कभी आवारा पशु, कभी अमेरिका यात्रा तो कभी गलत रिपोर्ट की बात कहकर वित्त मंत्री सुरेश खन्ना से सवाल किए।

राजनीतिक जानकर कहते हैं अखिलेश अपना मैसेज देने में सफल रहे हैं। वह जातीय जनगणना को सपा का मुद्दा बनाना चाहते हैं। इस पर, विपक्षी दलों और सत्तापक्ष के सहयोगी दलों को एक करने का प्रयास किया। अखिलेश ने जहां एक तरफ पिछड़ों की राजनीति करने वाली पार्टियों की गोलबंदी की। वहीं, युवा, किसानों की बात करके उनको पार्टी से जोड़ने की कोशिश की।

1- जातीय जनगणना पर पक्ष-विपक्ष के सहयोगी दलों को साथ लाने की कोशिश
अखिलेश का भाषण जातीय जनगणना से शुरू हुआ। सिर्फ बुधवार को ही नहीं, जब से बजट सत्र शुरू हुआ है तब से अखिलेश और शिवपाल लगातार जातीय जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं। वह बार-बार जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं। कभी बिहार तो कभी दक्षिण के राज्यों का एग्जाम्पल भी दे रहे हैं। बुधवार को भी जातीय जनगणना पर रालोद, अपना दल (कमेरावादी) ही नहीं, 2022 के चुनाव के बाद अलग हुए ओपी राजभर से भी सहमति मांगी। राजभर से उन्होंने कहा- हम दोनों इंजीनियर हैं, बाद में समझ लेंगे। राजभर ने भी कहा-100% हम जातीय जनगणना चाहते हैं।

यही नहीं, अखिलेश ने तंज कसते हुए बसपा विधायक उमाशंकर सिंह और सत्ता के सहयोगी दल के मंत्री संजय निषाद से भी जातीय जनगणना पर सहमति ले ली। अखिलेश यहीं नहीं रुके, उन्होंने पिछड़े की राजनीति के बूते यूपी के तीसरे सबसे बड़े दल अपना दल (एस) के मंत्री आशीष पटेल से भी जातीय जनगणना कराए जाने में साथ होने की सहमति मांगी।

फिलहाल, भाजपा के सहयोगी दलों ने कहा कि समय आने पर इसका जवाब सदन में ही दिया जाएगा। अखिलेश ने सदन में कहा- सबका साथ, सबका विकास, तभी होगा जब जातीय जनगणना होगी। हमें पता होना चाहिए, हम कितने हैं, हमारी संख्या कितनी हैं।

2- पिछड़ों की पॉलिटिक्स करने का संकेत
सपा के लिए चुनावी मंत्र-एमवाई फैक्टर यानी यादव-मुस्लिम के आसपास ही आंका जाता रहा। लेकिन, एक्सपर्ट बताते हैं कि अखिलेश अब सभी पिछड़ी जातियों की राजनीति करना चाहते हैं। सदन में उनका भाषण कुछ ऐसा ही इशारा कर रहा है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि 2014 या 2019 लोकसभा या फिर 2017, 2022 विधानसभा चुनाव। भाजपा पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर पकड़ बनाकर सत्ता पर पहुंचीं हैं। ऐसे में अखिलेश पिछड़ी जातियों के वोट बैंक पर सेंध लगाना चाहते हैं।

अखिलेश, सदन में जातीय जनगणना के बहाने पिछड़ी जातियों के सभी नेताओं को एक साथ लाते दिखाई दिए। उन्होंने सदन में पिछड़ी जातियों के सभी नेताओं का एक-एक करके नाम लिया। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि अखिलेश ने पिछड़ी जातियों की एकता पर फोकस किया। ऐसे में यह तय है कि आने वाले समय में वह पिछड़ी जातियों की राजनीति करेंगे। यह भी संभव है कि भाजपा के हिंदुत्व कार्ड के आगे वह पिछड़ी जातियों को खड़ा करना चाहते हो। ताकि, यूपी में मजबूत होती भाजपा को हिलाया जा सके।

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