उत्तर प्रदेशलखनऊ

सोशल मीडिया का पागलपन

स्वतंत्रदेश,लखनऊ:सोशल मीडिया प्लेटफार्म से लेकर उस पर मिलने वाले लाइक्स और कमेंट्स का यूथ्स पर भूत सवार है। मगर, जिन लोगों को लाइक्स और कमेंट्स कम मिलते हैं, वो मनोरोगी होते जा रहे हैं। जी हां, वर्चुअल दुनिया की चकाचौंध देख युवा रियल लाइफ से दूर होकर अवसाद में घिरते जा रहे हैं। उनके बदलते व्यवहार और​ चिड़ापन देखकर परिवार के लोग भी परेशान हैं।

करीब दो दर्जन अजीबो-गरीब मामले बीते 6 महीने के दौरान स्वस्ति मनोविज्ञान परामर्श केंद्र में काउंसिलिंग के लिए आए हैं।

सोशल मीडिया से होने वाले रोग

स्नैपचैट डिस्मॉर्फिया सिंड्रोम, फबिंग, फेसबुक डिप्रेशन, सोशल मीडिया एंग्जायटी डिसऑर्डर, फैंटम रिंगिंग सिंड्रोम, नोमोफोबिया, साइबरचोंड्रिया, गूगल इफेक्ट, फोमो।

केस- 1

बीए सेकेंड इयर में पढ़ने वाली एक स्टूडेंट ने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो को एडिट करके डाला। उस फोटो को उसने एडिट कर इतना संवार दिया था कि अब उसी तरह खुद को रियल लाइफ में दिखाना स्टूडेंट के लिए चुनौती बन गया है। अब उसे बाहर निकलने में भी डर लग रहा है। वो बार-बार यही सोच रही है कि वो लोगों के सामने अब असली चेहरा कैसे दिखाए।

केस- 2

बीकॉम की एक स्टूडेंट केवल इसलिए परेशान रहती है कि उसकी अच्छी से अच्छी पोस्ट पर अधिक लाइक नहीं मिलते हैं। पूरे दिन कभी-कभी रात में पूरा समय लाइक देखने के लिए मोबाइल झांकने में गुजर जाता। आखिर कैसी पोस्ट डालूं? स्टूडेंट ने बताया कि उसने शुरू में शौक से एक-दो रील्स बनाए। लोगों ने सराहा, तो अब पूरा समय उसे बनाने के लिए आइडिया सोचने में लग जाता है। बीए थर्ड इयर की स्टूडेंट हूं, करियर प्रभावित हो रहा है, पर लत ऐसी पड़ी है कि छूटने का नाम नहीं ले रही।

ब्रेकअप और पारिवारिक समस्या के भी आ रहे मामले
सेंटर में लव ब्रेकअप के भी मामले आए हैं। इनमें सबसे अधिक स्टूडेंट्स हैं, जो ब्रेकअप से मिले अवसाद से उबरने का रास्ता तलाश रहे। इसके अलावा दो तीन मामले ऐसे भी आए हैं, जो पारिवारिक समस्याओं से प्रभावित होकर खुद को अवसाद में पा रहे हैं और इसका प्रभाव करियर पर न पड़ने देने की सलाह मांग रहे हैं।

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